गरीब या मंदिर निर्माण के लिए दिया दान-कौनसा उत्तम?

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शंका

कौन सा दान उत्तम होता है? किसी ग़रीब और ज़रूरतमंद को दिया दान या मन्दिर निर्माण के लिए दिया हुआ दान?

समाधान

दान अपने आप में महत्त्वपूर्ण है; आप समझिए कि दान आप क्यों करते हो? दान करने का उद्देश्य क्या है? दान का वास्तविक कॉन्सेप्ट है- स्व-पर के उपकार के लिए अपने धन का परित्याग करना दान है। हम स्व-पर के उपकार के लिए दान करते हैं। 

दान कौन सा बड़ा है? जिसमें जितना बड़ा उपकार हो वो दान उतना बड़ा। आपने किसी भूखे को रोटी खिला दी उसकी एक दिन की भूख मिटा दी, तो आपका एक दिन की भूख मिटाने का उपकार हुआ। किसी आश्रयहीन की आजीविका की व्यवस्था कर दी तो आपने उस परिवार के शेष जीवन की व्यवस्था बना दी। किसी मरते की चिकित्सा करके जान बचा ली तो आपने उसकी शेष जिंदगी बचा ली। आपने किसी को पढ़ा-लिखा कर योग्य बना दिया तो एक आदमी को अपना परिवार चलाने में सक्षम बना दिया। लेकिन आपके किसी निमित्त से किसी जीव को सम्यक् दर्शन की प्राप्ति हो गई तो उसके भव-भव का उद्धार हो गया। तो कौन सा बड़ा उपकार हुआ? ध्यान रखो! ये भव सुधारक दान है इससे भव का उद्धार होता है और दूसरे में जीवन के निर्वाह की व्यवस्था बनती है। 

इसलिए जब हम बात करते हैं दान की, तो एक पारमार्थिक दान है और एक लौकिक दान है। दान दोनों मूल्यवान हैं। जो आवश्यक है वो करना चाहिए। लेकिन लौकिक दान और पारमार्थिक दान में, पारमार्थिक दान महत्त्वपूर्ण है उसे कभी नहीं भूलना चाहिए। ‘फिर महाराज! हम बाकी जगह दान क्यों दें?’ नहीं! ऐसा नहीं है। बाकी जगह भी दान दो।

कई बार ऐसा होता है कि एक important होता है और एक urgent होता है। ऐसा मैंने पहले भी बोला है,Important काम को भी कभी Urgent काम आ जाने के कारण गौण करना पड़ता है। जैसे मान लीजिए किसी व्यक्ति की प्रधानमंत्री से शाम को ५:३० पर मीटिंग फिक्स हो गई और वो उसके यहाँ जाने वाला हो उसी समय यदि उसे शौच की बाधा हो जाए तो पहले important मीटिंग को महत्त्व देंगे कि urgent जाऐंगे? क्या करोगे? मीटिंग को Important मानकर अपना कपड़ा खराब करोगे कि पहले urgent काम करोगे? तो कई बार ऐसा होता है कि important को भी गौण करना पड़ता है urgent को ज्यादा मूल्य देना पड़ता है। लेकिन urgent है, important नहीं। 

अगर तुम चले जा रहे हो और दीन दुःखी कोई दिख रहा है, तो पहले उसकी सहायता करो ये urgent है, तुम्हारा दायित्व है। भगवान की पूजा तुम एक घंटे बाद कर लोगे तो ठीक है। लेकिन मैं एक ही बात कहता हूँ कि शौच की बाधा हो तो शौचालय में जाना जरूरी है लेकिन शौचालय में ही बैठे रहना पागलपन है। इस बात को ध्यान रखो, वहाँ जाओ और जितनी जल्दी हो निकल आओ तो बात बने।

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