F Letter – फैक्ट (FACT), फेथ (FAITH), फेस (FACE), फ्रेश (FRESH)
किसी सरोवर में चंद्रमा का प्रतिबिंब दिखता हो तो बड़े लोग उस चंद्रमा के सौंदर्य का आनंद लेते हैं लेकिन बच्चे उस चाँद को पकड़ने को मचल उठते हैं। निष्कर्ष क्या होता है चाँद पकड़ में नहीं आता और बच्चे रोते हैं। हकीकत क्या है वहां कुछ चाँद जैसा है क्या वहां चांद है या केवल चाँद का प्रतिबिंब है। बड़े इस बात को जानते हैं इसलिए उस प्रतिबिंबित चाँद का आनंद लेते हैं और जो बच्चे इस सच्चाई को नहीं जानते उस चाँद को ना पकड़ पाने के कारण रोते हैं। संत कहते हैं- ‘जीवन का रस लेना है तो जीवन की सच्चाई को जानो’। यहां जो कुछ है वह केवल प्रतिबिंब है, उसे पहचानो। सच्चाई को जाने बिना हम अपने जीवन का उद्धार नहीं कर सकते।
आज बात F लेटर की है, F का पहला word है फैक्ट (FACT), जीवन की सच्चाई क्या है what is the fact of life? बोलो आपने अपने जीवन की सच्चाई को पहचाना? जो दिख रहा है वही सच है कभी विचार किया? क्या है जीवन का सच? आप बोलोगे- महाराज! जीवन के सच की बात पूछ रहे हो जीवन क्या है, हमें तो यह भी समझ में नहीं आता सच तो बहुत दूर है। संत कहते हैं- ‘सच को जानोगे तो जीवन का रस ले पाओगे और सच से अनभिज्ञ रहोगे तो सारे जीवन रोते रहोगे’। जीवन का रस लेना है, जीवन का आनंद लेना है तो जीवन की सच्चाई को जानो, जीवन की वास्तविकता को जानो, जीवन के यथार्थ को पहचानने की कोशिश करो। क्या है फैक्ट, क्या है सच, जो दिख रहा है उसमें क्या सच है? थोड़ा फैक्ट को देखो। फैक्ट की स्पेलिंग क्या है?
फैक्ट में F बोलता है सब फाल्स है। दुनिया में जो कुछ भी दिख रहा है सब फाल्स है। सब के सब झूठ है सच्चा कोई नहीं है, सब सपना है। क्या तुम्हें यह बात समझ में आती है? क्या ऐसा लगता है कि सब झूठे हैं? सारा संसार झूठा है। मनुष्य के सारे सपने झूठ पर आधारित हैं। बोलो मैं जो बोल रहा हूं, वह सच बोल रहा हूं कि झूठ? समझ में आ रही है बात? महाराज जब तक आपके सामने रहते हैं तब तक समझ में आती है बाद में तो हम कुछ और ही समझते हैं। क्या है सच? यह तुम्हारा तन, यह तुम्हारा धन, यह तुम्हारे परिजन, यह तुम्हारी संतान, यह तुम्हारी संपत्ति, यह तुम्हारी सत्ता, यह तुम्हारी शक्ति, क्या है तुम्हारी? बोलो सब माया जाल, सब भ्रम जाल। आज है, कल रहे कोई भरोसा नहीं। सब एक सपना है, और सपना भी अपना लगता है कब तक? जब तक आंखो में नींद होती है।
जब तक नींद भरी आंखों में तब तक दृश्य जगत अपना है,
इतनी देर जाग कर जी लो जितनी अभी उम्र बाकी है,
कोई नहीं किसी का साथी सारी यात्रा एकाकी है।
यह सब सपना है, एक भ्रम है, बस अंतर क्या है? एक सपना मनुष्य बंद आंखों में देखता है एक सपना खुली आंखों से देखता है। बंद आंखों का सपना थोड़ी देर का होता है खुली आंखों का सपना सारी जिंदगी चल चलता है। जब तक तुम सपने में खोए रहोगे जीवन इसी प्रकार दुखी बना रहेगा। मैं आपसे सवाल करता हूं- रात सपने में आपने राजपद पाया, राजवैभव पाया, आपको खुशी होती है? कभी-कभी आप सपने में ऐसे भी देखते होंगे मेरा सब कुछ खो गया है। होता है? जितनी देर उस सपने में रहते हैं मन उससे जुड़ा रहता है। खिन्न भी होते हैं, सुखी भी होते हैं, दुखी भी होते हैं सब चीजें साथ-साथ चलती रहती है। जैसे ही अचानक कोई बुरा सपना देखा और हड़बड़ाहट में नींद खुली। नींद खुलने के बाद क्या होता है? अरे! यह तो सपना था। फिर कोई तकलीफ? तुमने राज खोया, वैभव खोया, परिवार खोया, धन खोया, संपत्ति खोई, रूप खोया, सब कुछ खोया, मर भी गए। मान लो सपने में मर गए, तो क्या होता है? डर जाते है। महाराज, सपने में डरते हैं, जगने के बाद नहीं डरते। यह सपना था। सपना को सपना समझने वाला व्यक्ति, चाहे कैसा भी सपना हो, रंचमात्र विचलित नहीं होता और सपना को सच मानने वाला व्यक्ति पल भर को भी स्थिर नहीं रहता। तुमने सपना को सच माना, यह भ्रम है। यथार्थ को पहचानो यह सब सपना है। चल रहा है सो चल रहा है।
गुरुदेव कहते हैं-
आंख खुली सपना गया,
आंख मिची अपना गया
और नश्वर है संसार,
आंख चढ़ी दफना गया
खेल खत्म। आंखें चढ़ेगी दफना दिए जाएंगे। यह सपना है, सपने को सपना समझो। लोग नहीं समझते, इसलिए जीवन भर दुखी रहते हैं। अगर अपने आपको सुख में, दुख में, अनुकूलता में, प्रतिकूलता में, जीवन में, मरण में, लाभ में, हानि में, संयोग में, वियोग में, जय और पराजय में स्थिर बनाए रखना चाहते हो तो एक सच्चाई को अपने हृदय में स्थापित कर लो, सब कुछ फाल्स है। सपना है, झूठा है, सच नहीं है।
एक राजा था। उसका एक इकलौता बेटा था। राजा का बेटा गंभीर रुप से बीमार हो गया। राजा ने अपने बेटे की चिकित्सा के लिए तरह-तरह के उपाय किए। बेटा ठीक नहीं हो पा रहा था। वह तीव्र ज्वर से आक्रमित था। बुखार ठीक होने का नाम नहीं ले रहा था। राजा, रानी दोनों अपने बेटे के पास बैठे थे। कई रात से सोए नहीं थे। पूरी रात-रात बेटे के सामने जागकर बिताते। तरह-तरह के उपचार करते, कोई काम नहीं आता। अचानक बैठे-बैठे ही राजा को झपकी आ गई, झपकी आने के बाद राजा सपना देखता है और सपना क्या देखता है- वह एक बहुत बड़ा चक्रवर्ती राजा है। एक छत्रादिपत्य है, बड़ा विशाल साम्राज्य है और उसके सात-सात बेटे हैं, सब उसकी आज्ञा को मान रहे हैं। पूरी धरती पर उसका एकाधिपत्य साम्राज्य चल रहा है सब उसकी अधीनता को स्वीकारें हुए हैं। इसी सपने में खोए हुए थे अचानक उसके बेटे को एक हिचकी आई और प्राण पखेरु उड़ गए। जैसे ही बेटा मरा, पत्नी चीखी। पत्नी की चीख सुनकर राजा की नींद टूटी। नींद खुलते ही जैसे ही देखा कि बेटा मर गया है। सामने बेटा मृत पड़ा था राजा बेटे को देखा और जोर से हंसने लगा। राजा जोर-जोर से हंसने लगा रानी को यह बड़ा अटपटा लगा। क्या पागलपन दिखा रहे हो? एकलौता बेटा, जिसके पीछे अपने प्राण अटके हैं, अब यहां से चला गया और तुम हंस रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए, यह तो मातम मनाने का क्षण है। राजा ने कहा- मैं यही सोच रहा हूं कि किस पर रोऊँ? मैं इस एक के लिए रोऊँ या उन सात के लिए रोऊँ। जब वह सात थे तो यह एक नहीं था, जब यह एक है तो वे सात नहीं है । यह एक मरा या वह सात मरे, मैं किसके लिए रोऊँ। मैं तो यह समझ रहा हूं कि वह भी एक सपना था यह भी एक सपना है।
यह सच है कि जीवन में कोई नहीं अपना, सब सपना है। इस सत्य का बोध जिस मनुष्य के हृदय में हो जाए उसके हृदय में, उसके जीवन में, कभी दुख आएगा ही नहीं। सब फाल्स है इस फैक्ट को समझो, जीवन की सच्चाई को समझो, जीवन में जो कुछ भी है वह तुम्हारा नहीं है। तुम्हारे पास है, तुम्हारा नहीं है। एक सपना है जिसे तुमने सृजित कर रखा है इसमें उलझो मत।
फैक्ट की बात मैं आपसे करूँ। चार चीजें है, इसे यथार्थता के साथ समझ लो, जीवन में गांठ बांध लो। नंबर एक- ‘जीवन में जो कुछ भी तुम्हारे पास है वह तुम्हारा नहीं है’। नंबर दो- ‘कर्म के अधीन है’। नंबर तीन- ‘क्षणक्षयी है’। नंबर चार- ‘दुख देने वाले हैं, आकुलता उत्पन्न करने वाले हैं’।
तुम्हारे नहीं है, तुम्हारे पास है। तुम्हारे अधीन नहीं है, उसका नियंत्रण किसी और पर है। क्षण-क्षण नष्ट होने वाले हैं और जब तक हैं आकुलता देने वाले हैं। यह जीवन की एक सच्चाई है। इस सच्चाई को जिस दिन समझ लोगे, जीवन ही पलट जाएगा। लेकिन क्या करे, सारा जीवन जीते हैं आदमी, सच को नहीं समझते हैं और मुर्दे को राम नाम सत्य सुनाते हैं। जीते-जी कोई राम नाम सत्य नहीं, मुर्दे को राम नाम सत्य सुनाते हैं। मैं जब छोटा था, मेरा एक मित्र था, बड़ा शरारती था और एक पंडित जी थे। बड़े भले आदमी थे। मंदिर में भगवान की पूजा किया करते थे, एक अच्छे महंत के रूप में आदरित थे। एक दिन उस शरारती लड़के ने उनको छोड़ने के लिए कह दिया ‘राम नाम सत्य है’। ‘राम नाम सत्य है’ जैसे ही पंडित जी ने सुना एक दम टूट पड़े, क्या बात करता है तू? लड़का भाग खड़ा हुआ, पंडित जी उसके पीछे पड़े। वह फिर बोला, ‘राम नाम सत्य है’ यह बात मत बोला कर। वह जब भी उधर से गुजरे, पंडित जी पूजा कर रहे हैं, राम की आरती उतार रहे हैं और वह कह दे ‘राम नाम सत्य है’। पंडित जी बोखलाये- यह क्या कह रहा है तू, यह तो मुर्दे को सुनाने की बात है, मुझे क्यों बोलता है। अब वह रोज उनको तंग करे ‘राम नाम सत्य है’। एक दिन जब बोला तो पंडित जी लाठी लेकर उसके पीछे दौड़ पड़े और सीधे उसके घर पहुंचे। घर में जाकर उसके पिता के पास शिकायत की- इस लड़के को समझाओ, बहुत बेहूदी बातें बोलता है, यह उलटी-पुलटी बातें बोलता है। पिताजी ने कहा- पंडित जी! गलती है, उलटी-पुलटी बातें नहीं बोलना चाहिए। क्या बोलता है। यह मत पूछो। लड़के ने कहा- पंडित जी! बताइए तो मैंने क्या बोला? सच्चाई बताइए मैंने क्या बोला? आप मेरे ऊपर आरोप लगा रहे हैं, क्या बोला है यह तो बताइए। नहीं नहीं यह तो बताने की बात नहीं है, यह तो गलत बोलता है। लड़का बोला- आप नहीं बताते हो तो मैं बोल दूं क्या? पंडित जी बोले- तू भी मत बोल। वह सुनने को तैयार नहीं। अब क्या करें? पिताजी ने बातचीत की, पंडित जी को विदा किया और लड़के से बोला, क्या कह दिया तूने, बवाल खड़ा कर दिया। लड़का बोला- मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने कहा- ‘राम नाम सत्य है’। ये क्या बोलते हैं, यह तो मुर्दे को सुनाने की बात है, तो बताओ मुर्दे को क्यों सुनायें, मुर्दा कोई सुनता है क्या? यह तो जीते जी इंसान को सुनाना चाहिए ‘राम नाम सत्य है’। पिताजी ने कहा- बात तो बिल्कुल सही है, लेकिन सच्चाई है ‘राम नाम सत्य है’ जिसे जीते-जी कोई सुनना पसंद नहीं करता। मुर्दे को लोग सुनाते हैं, इसलिए जीते-जी लोग मुर्दे बने रहते हैं। जिस दिन जीते-जी इस बात को सुन लोगे, ‘राम नाम सत्य है’ बाकी सब असत्य हैं जीवन के परम तत्व को जान जाओगे। जिस दिन जीते जी तुम इस बात को अवधारित कर लोगे ‘राम नाम सत्य है बाकी सब असत्य है’ जीवन के परम तत्व को उद्घाटित कर लोगे। परम सार को प्राप्त कर लोगे।
फैक्ट को पहचानो, सब फाल्स है। क्या सत्य दिखता है तुम्हें- पैसा, परिवार, पदार्थ, प्रतिष्ठा या प्रभु परमात्मा क्या सच दिखता है? अपने मन से पूछो सच्चाई यह है कि झूठे को तुमने गले लगाया और सच्चे से मुंह मोड़ा है। यह फाल्स है इनसे अपने आप को डाइवर्ट करो। इस वक्त को पहचानो, मुड़ जाओगे, जीवन धन्य हो जाएगा। पहली बात फैक्ट में सब फाल्स है।
दूसरी बात A से एक्टिंग (ACTING) है। सब नाटक है, संसार में जो है, सब नाटक है। सब बड़े कलाकार हैं सब नाटक ही कर रहे हैं। हम, तुम, सब जो जीवन जी रहे है, एक नाटक है। नाटक को नाटक की तरह देखो। नाटक में अटको मत। नाटक में क्या होता है? अच्छा दृश्य भी आता है, बुरा दृश्य भी आता है। जो कलाकार होता है वह हंसने का भी दृश्य करता है रोने का भी दृश्य करता है और जो नाटक देखने वाले होते हैं वह हंसने के दृश्य में हंस लेते हैं रोने की दृश्य में रो लेते हैं लेकिन नाटक के बाद सब भूल जाते हैं कहते हैं यह तो सब नाटक है। नाटक देखो, पिक्चर देखो, मूवी देखो और मूवी देखते समय वैसी वैसी बातें दिमाग में आती है जो दिखाया जाता है। वह सब भाव अंदर उभरते हैं लेकिन नाटक को जो नाटक मान कर देखता है वह उसमे अटकता नहीं तो उस पर उसका कोई असर नहीं पड़ता और जो नाटक को वास्तविकता मान लेता है वह कभी रोता है कभी हंसता है।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल के एक बहुत बड़े दार्शनिक और समाजसेवी थे। वह एक नाटक देख रहे थे। वह एक नाटक में गए। बंगाल वैसे भी नाटक के लिए बहुत मशहूर है। देखते क्या है- एक युवक एक युवती को छेड़ रहा है। युवक युवती को छेड़ रहा है और देखते-देखते जब बदतमीजी की सीमा को पार कर दिया तब ईश्वरचंद्र विद्यासागर से रहा नहीं गया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर सीधे अपने स्थान से उठे सीधे मंच पर चढ़े और अपने जूते उतार कर पांच-सात जूते उस कलाकार को जड़ दिया। कलाकार ने उस जूते को अपने सिर पर रखा और माइक पकड़ते हुए बोला, मैं पिछले 25 वर्ष से नाटक करता आ रहा हूं, मुझे एक से एक अवार्ड मिले पर आज जैसा अवार्ड मुझे कभी नहीं मिला और वह भी ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे व्यक्ति के द्वारा। जो व्यक्ति भूल गया कि यह नाटक है और किसी के कलाकार के अभिनय को यथार्थ समझ लेना ही उसकी सबसे बड़ी सफलता है, मैं इन्हें प्रणाम करता हूं। ईश्वर चंद्र विद्यासागर अपने आप में बड़े लज्जा और शर्मिंदगी का अनुभव किए। संत कहते हैं- ‘यही तो होता है तुम्हारे साथ, पहचानो, यह नाटक है पर तुम उस में अटक गए’।
हमारे गुरुदेव कहते हैं-
‘सारा का सारा संसार है बहुत बड़ा नाटक,
उस में भांति भांति के रूप धर, भाग ले,
पर भूलकर भी पल भर को इसमें ना अटक
यह संसार है बहुत बड़ा नाटक’।
एक्टिंग है, एक्टिंग करो, एक्टिंग का मजा लो, समझ लो यह एक्टिंग है, फैक्ट नहीं है यही जीवन का FACT है। समझ गए, इसे समझो।
FACT –
F – FALSE,
A – ACTING,
C – Controlled by Karma
तुम्हारे संसार की जो भी व्यवस्थाएं हैं यह तुम्हारे आधीन नहीं है। किसके अधीन हैं? कर्मों के आधीन। बताओ तुम्हारे हाथ में क्या है? तुम्हारे पास में क्या है यह तो तुम बोल सकते हो। तुम्हारे हाथ में क्या है? यह बताओ। जो भी तुम्हारे पास है तुम्हारे हाथ में हैं? अगर ना तुम्हारा है ना तुम्हारे हाथ में हैं सब खोने वाली चीजें हैं, आती है और जाती है, तुम्हारी नहीं है। तुम्हारे पास भले हैं पर तुम उसके कस्टोडियन (custodian) हो और कस्टोडियन भी ऐसे कि अपनी मर्जी से उसका संचालन करने की व्यवस्था नहीं है। तुम्हें तो केवल जमा खर्च करने का अधिकार है। जैसा डायरेक्शन मिले वैसा काम कर दो। कर्म का उदय है, सारा संसार कर्म के खेल से चलता है। कर्म अनुकूल होता है सब अनुकूल हो जाता है, कर्म प्रतिकूल होता है सब प्रतिकूल हो जाता है। जब चीजें मेरे हाथ में नहीं है कर्म के नियंत्रण में हैं और उसके नियंत्रण में जीना मेरी मजबूरी है तो मैं क्यों आकुल व्याकुल होऊं, क्यों हर्ष विषाद करूं, क्यों रोऊँ और क्यों गाऊँ, किस पर रोऊँ और किस पर गाऊँ? शांत रहो, स्वीकार करो, सहजता से अंगीकार करो, यह अपनी दृष्टि भीतर से विकसित कीजिए। अंतर में जिसके यह दृष्टि उद्घाटित होती है वह सोचता है, भैया, यह सब कर्म से रेगुलेटेड है कर्म से कंट्रोल्ड है, मेरे हाथ में तो कुछ भी नहीं है। मैं सोचूं, सब अच्छा-अच्छा मिले बुरा बुरा चले जाए, है तो देख लो करके, जब एक सांस भी तुम्हारे हाथ में नहीं है तो बाकी की बातें क्यों, इतनी मगजमारी क्यों, इतनी माथापच्ची क्यों, अपने आप को पलटिये, अपने धारा को पलटिये और जीवन को उसी के अनुरूप आगे बढ़ाने की कोशिश कीजिए। कर्म का खेल है, कर्म तो खेल खिलाता है, पल में राजा को रंक बना देता है, रंक को राजा बना देता है, अमीर को गरीब बना देता है, गरीब को अमीर बना देता है, करोड़पति को रोड़पति बना देता है, रोडपति को करोड़पति बना देता है, रूपवान को कुरुप बना देता है, कुरूप को रुपवान बना देता है, पंडित को पागल बना देता है, पागल को पंडित बना देता है, यह कर्म है, खेल खिलाता है, नाच नचाता है, यहाँ नाचते हैं सारे संसार के लोग, जानो तो सही। तुम्हारी दशा कठपुतली की भांति है। कठपुतली को नचा कौन रहा है, वह सूक्ष्मतर दिखता नहीं है। उस को समझो, सब कर्म से नियंत्रित है, कर्म के अधीन है, मेरे अधीन कुछ भी नहीं है।
FACT में T से टेम्पररी (TEMPORARY)।
सब टेंपरेरी है, परमानेंट कुछ भी नहीं है। फॉल्स है, एक्टिंग है, कर्म के अधीन है और टेम्पररी है। जिसको फैक्ट का बोध हो जाएगा जीवन में कभी फेल (FAIL) नहीं होगा। समझ गए और तुम सब फेल हो क्यूंकि इस फैक्ट का बोध नहीं है। फैक्ट को जानो। यह जीवन की बहुत बड़ी सच्चाई है। तुम्हारा जीवन है, तुम्हारा योवन है, तुम्हारा धन है, सब क्या है पानी का बुलबुला है। सब जल पुप्पुद समान है। सब क्षणक्षयी, टेम्पररी, मोमेंट्री है, कुछ भी टिकाऊ नहीं है।
दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं-
यह रोशनी है हकीकत में इक छल है लोगों,
जैसे जल में झलकता हुआ महल हो
पानी में महल झलकता है कितनी देर, जब तक पानी को ना हिलाया जाए उतनी देर। यह सब एक झलकन है इसे प्रतिबिंब समझो। बस पल भर का प्रतिबिंब माना जाए इसे समझो। पल में वैराग्य हो जाएगा। एक क्षण, कब किसका अंत हो जाए पता है?
सब बोलते हैं-
राजा राणा छत्रपति हातिन के असवार,
मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार।
सबको पता है, हमको भी पता है आपको भी पता है, हमको भी सिखाया गया आपको भी सिखाया गया, जब हम दूध पीते थे तब ये सिखाया गया। आपको भी ऐसे ही सिखाया गया होगा। मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार, बचपन में बच्चा जबसे बोलना, लिखना शुरू करता है तब से ही बारह भावना सिखा देते है। सुन लेते है, मान लेते है? मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार, सुन लेते है, पर मानते क्या है? मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार यानि और सबको मरना है मुझे नहीं मरना, अभी नहीं मरना, या कभी नहीं मरना, मुझे नहीं औरों को मरना है मतलब मैं मरूँगा पर अभी नहीं, कब? जब सब मर जायेंगे तब। सबके आखिरी में मेरा नंबर है। सबको मार के मरोगे ऐसे नहीं मरोगे? बड़े खतरनाक हो तुम। सबको अपनी-अपनी बारी-बारी से मरना है यानि सब कुछ नष्ट होने वाला है, सब कुछ क्षणक्षयी है। एक बात बताऊं, दुनिया की चीजों को क्षणिक मान लोगे तो पल भर भी उससे तुम प्रभावित नहीं होगे, उसे पाने में ज्यादा खुशी नहीं होगी खोने में ज्यादा कष्ट नहीं होगा। पानी का बुलबुला फूटता है कोई तकलीफ होती है? अरे! बुलबुले हैं ऐसे ही फूल आते हैं टूट जाते हैं। छोटे बच्चे बैलून से खेलते हैं बलून खेलते-खेलते फूट जाता है कोई तकलीफ होती है? बच्चे कदाचित रो देते हैं अरे बलून इतना अच्छा था फूट गया। बड़े कहते हैं, बेटे घबराता क्यों हैं यह बलून तो फूटने के लिए ही होते हैं चल फूट गया। बचपन में आपने मिट्टी के घरौंदे बनाए होंगे। आजकल के बच्चों की बात अलग है, मिट्टी के घरौंदे, रेत के घरौंदे बनाया करते थे। आपने बनाएं या ना बनाएं मैंने तो बनाए हैं, सबने बनाए होंगे। आज के हाईटेक बच्चों की बात अलग है, रेत के घरौंदे बनाये, और घरौंदे बनाते-बनाते जब खेल खत्म हो जाए उसको लात मार के तोड़ दें, उसकी कोई तकलीफ? क्यों? यह रेत का घरौंदा टूटना ही है और हमें उसके टूटने फूटने में रंच मात्र भी तकलीफ नहीं होती। बंधुओं! समझो! यह सब क्षणक्षयी है पल भर में विनष्ट होने वाला है ऐसी दृष्टि तुम्हारे हृदय में जग जाए तो तुम्हारे जीवन की धारा ही बदल जाए।
जिंदगी पे डाल ली जिसने हकीकत की नजर
जिंदगी उसकी नजर में बेहकीकत हो गई
जिस दिन तुम इस सच्चाई को समझ लो लोगे तुम्हें सारा संसार झूठा प्रतीत होगा। इस सच्चाई को जान लो जिंदगी पर डाल दी जिसने हकीकत की नजर जिंदगी उसकी नजर में बेहकीकत हो गई। क्या हकीकत है तुम्हारी?
हकीकत क्या है?
कोई सोता हो जैसे किसी डूबती हुई किश्ती की तख्ती पर
अगर सच पूछो तो दुनिया की बस इतनी सी ही हकीकत है
वह तो तख्ती डूबने वाली है जाग जाओ।
फैक्ट (FACT) को पहचानिए, F, A, C, T।
दूसरी बात फेथ (FAITH), विश्वास है तुम्हारा इस फैक्ट पर? इस फैक्ट पर फेथ करो, जीवन में मजा आ जाए। तुम सत्य को जानते जरूर हो, मानते कोई नहीं। सबको पता है जितनी बातें मैंने बोली है ऐसा कोई नहीं है जो यह नहीं जानता। बोलो, किसको पता नहीं कि संसार क्षणभंगुर है, दो दिन की जिंदगी है, कब मेरी सांस चली जाए, आखिरी सांस का कोई भरोसा नहीं, एक एक सांस का भरोसा नहीं। भैया! यह सूरज उगा है दिन ढलेगा, कब ढल जाए कोई पता नहीं, मेरी कौन सी सांस मेरी आखिरी सांस हो जाए पता नहीं, कब मेरी अर्थी उठ जाए मुझे कोई पता नहीं, कब मेरी चिता जल जाए कोई पता नहीं, एक हिचकी आएगी खेल खत्म हो जाएगा है, पता है कि नहीं? ना मैं कुछ लेकर आया हूं ना मैं कुछ लेकर जाऊंगा, पता है कि नहीं? ना मैं ना कोई मेरा है ना मैं किसी का हूं यह पता है कि नहीं? संसार के जो भी संयोग है वह मेरे अधीन नहीं, कर्म के अधीन है, कर्म खेल खिलाता है, कभी अच्छा, कभी बुरा बनाता है, यह पता है कि नहीं? है फैक्ट पर विश्वास, बोलो विश्वास नहीं है फेथ नहीं है। फैक्ट पर फेथ करने वाले का ही कल्याण होता है। धर्म की भाषा में कहूं तो सम्यग्दर्शन के बिना कल्याण नहीं और सम्यग्दर्शन का मतलब क्या? फैक्ट पर फेथ, जीवन की वास्तविकता पर विश्वास, जीवन की सच्चाई पर विश्वास, जीवन के यथार्थ पर विश्वास, वो विश्वास हमारा होना चाहिए, पक्का विश्वास, अंदर का विश्वास। तुम्हारा सारा विश्वास झूठा है, थोथा है। कह तो देते हो, फेथ है इमानदारी से बोलो, किस पर है? तुम्हारा फेथ कैसा है बोलना? फेथ है? कैसा है? और किस पर है? जो बातें मैंने बताई उस पर फेथ है? फैक्ट पर है? या फॉल्स पर है, बोलो? फॉल्स पर है इसलिए फेल हो, फैक्ट पर फेथ करो, फेथ करो जीवन आगे बढ़ जायेगा। फैक्ट पर फेथ करो। मेरे जीवन की सच्चाई यह है इस पर भरोसा करो। क्या बताऊं, तुम्हारा उन पर भरोसा होता है जो भरोसा करने के लायक नहीं है। उन पर तुम बिलकुल भरोसा नहीं करते जिन पर भरोसा करो तो तर जाओ। आप सलून में हजामत बनाने जाते हो। जब हजामत बनाने जाते हो तब नाई जैसा कहता है वैसा करते हो कि नहीं? वह गर्दन झुकाने के लिए कहता है तो अपने आप झुका देते हो, जबकि उसके हाथ में उस्तरा है, नाई के हाथ में उस्तरा है और उसके बावजूद वह गर्दन झुकाने को कह रहा है तो तुम पल में गर्दन झुका देते हो, कहीं गर्दन काट दे तो? लेकिन तुम्हें विश्वास है ना? कि गर्दन नहीं काटेगा। नाई के कहने पर गर्दन झुकाने को तैयार हो पर गुरु के कहने पर तुम अपना दृष्टिकोण को बदलने को तैयार क्यों नहीं होते? विचार करो। किस पर फेथ ज्यादा है तुम्हारा? फेथ, सच्चाई पर विश्वास कीजिए। जीवन के यथार्थ को अपने हृदय में स्थापित कीजिए कि वास्तविकता तो यही है बाकी एक्टिंग है। चल रहा है, मेरे पास है मेरे नहीं है, मेरे साथ है मेरे नहीं है, मेरे द्वारा नियंत्रित नहीं है, यह सब कर्म से नियंत्रित है, पर पदार्थ है, कर्म की धरोहर है, आज है, कल है रहे न रहे, मेरा कुछ भी नहीं है, मेरा तो बस मैं हूं और कुछ नहीं, यह विश्वास अंतरंग में होना चाहिए।
पहली बात फैक्ट, दूसरी बात फेथ और तीसरी बात फेस (FACE)। फैक्ट पर फेथ करो और जो सामने आए उसका सामना करो। फेस मतलब चेहरा नहीं, फेस मतलब सामना करो। जो भी सामने आए उसका सामना करो। एक बात बताऊँ, जब जीवन के फैक्ट पर फेथ होगा ना तो तुम कभी भी नहीं घबराओगे। जो सामने आएगा उसका सामना करो। सबका सामना करो, जो है, सो है यह तो संसार है, जो है उसका सामना करो महापुरुषों के जीवन को देखो उनके जीवन में कितने दुख आये, कितने संकट आए, कितने विषम परिस्थितियां आई, कैसी-कैसी परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ा पर कभी वह मुंह मोड़ करके नहीं भागे। पीठ दिखा करके नहीं भागे, क्या किया? सामना किया। ठीक है जो सामने हैं उसका सामना करो।
फेस वर्ड क्या बोलता है? फेस की स्पेलिंग क्या है? FACE – ‘F’ यानि जो फ्रंट में हो उसके प्रति A-अवेयर रहो और C यानि केयरफुली, E यानि एफर्ट करो। जो सामने हो उसके प्रति सावधान हो जाओ और केयरफुली एफर्ट करो, प्रयत्न करो, पुरुषार्थ करो, पार हो जाओगे।
जो सामने हो उसका सामना करो, जीवन में कभी भी मत घबराओ, कर्म जैसा खेल खिलाता है वैसा खेल खेलो, घबराओ मत, हमेशा अपने दिल दिमाग में एक बात को स्थापित रखो, कर्म की सत्ता से बड़ी धर्म की सत्ता होती है। कर्म आज खेल खिला रहा है कल बदलेगा, स्थिरता पूर्वक सामना करो, धैर्यपूर्वक सामना करो, रंच मात्र भी मत घबराओ। बंधुओं! हम जब देखते हैं जीवन में तो यह चीजे होती है। कर्मों की लीला विचित्र है, पल में कुछ का कुछ हो जाता है। सारा संसार पुण्य-पाप का खेल दिखता है। समझ गए? अगर आप पुराणों को पढ़ोगे तो चार बातें मिलेगी 1. कर्म की विचित्रता 2. पुण्य पाप का खेल 3. महापुरुषों की लीला और 4. परिणामों का चमत्कार।
सारे पुराण, ग्रंथों का निचोड़ है यह। कर्मों की विचित्रता, कर्म किसी को नहीं छोड़ता, भगवान को भी नहीं छोड़ता। भगवान ऋषभदेव को भी कर्म ने नहीं छोड़ा लेकिन क्या किया? उन्होंने कर्म के आगे हार मानी? कर्म के आगे घुटने टेके? कर्म को पीठ दिखाई? नहीं, उसका सामना किया और जड़ मूल से उखाड़ कर फेंक दिया। पारसनाथ भगवान के ऊपर कर्म ने कैसी करामात दिखाई लेकिन पारसनाथ भगवान ने समता के बल पर उसका सामना किया और कर्म की कमर तोड़ दी। हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया, जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया। कब? सामना किए तब। कर्म से घबराते तो, कर्म उन पर हमला बोलता और उनकी कमर तोड़ देता। महापुरुषों का जीवन भी कर्मों से बचा नहीं, हम तुम किस खेत की मूली है। जो कर्म है सामने आएगा उसे भोगना पड़ेगा पर कर्म को भोगना, कर्म से घबराना मत। सामना करना। कैसे? जागरुक होकर सामना करना। यह मानकर चलना यह क्रम है, यह मेरा स्वभाव नहीं है मेरे साथ जुड़ा है, खेल खिलाएगा, खेलेंगे पर हम अपने आपको उसमें ज्यादा इन्वॉल्व नहीं करेंगे। अपने आपको से अप्रभावित रखेंगे। कर्म मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकता और संसार में पुण्य पाप का खेल चलता है। कभी पुण्य आता है, कभी पाप आता है। पुण्य हमको उछालता है पाप हमको पछाड़ता है, उछाल-पछाड़ का खेल तो चलता ही रहता है, कैसा-कैसा विचित्र हाल होता है। कभी-कभी एक ही साथ पुण्य और पाप दोनो चलता है। एक रोज मैंने इसी विषय में प्रवचन किया। झारखंड की बात है, सम्मेद शिखरजी में प्रवचन किया। प्रवचन की समाप्ति के बाद गया के एक सज्जन ने मुझसे कहा- महाराज! कल ही मेरे पास साथ ही कुछ ऐसा ही घटा। चीनी का व्यापार था उनका, महाराज! मेरा मुनीम दस लाख रुपए की वसूली करके आ रहा था, दस लाख रुपया लूट लिया गया। लुटेरों ने लूट लिया, वह समाचार मेरे पास आया, समाचार पूरा हुआ ही नहीं कि मेरा बड़ा लड़का लखनऊ में था, एक जमीन की डील थी काफी दिनों से लंबित थी। उस लड़के का फोन आया कि पापा वडील आज पूरी हुई अपने को सात लाख का फायदा हुआ उन्होंने कहा- महाराज! मैं वो दस लाख पर रोऊँ या सात लाख पर हसूँ। यह संसार है, एक तरफ पाप है, एक तरफ पुण्य है, यह खेल खिलाता है खेलो। यह पुण्य पाप का खेल है। समझो, किस पर रोओ किस पर हंसो? तुम्हारे हाथ में कुछ है ही नहीं। इसलिए कहते हैं-
पुण्य पाप फल माही हरख बिलखो मत भाई
ये पुद्गल परजाय उपज विनशे थिर नाहि
इस आध्यात्मिक अवधारणा को अपने हृदय में स्थापित करो, फेस करो, महापुरुषों ने अपने जीवन में फेस किया। देखो, जीवंधर का चरित्र पलट कर देखो। छत्र-चूड़ामणि अद्भुत ग्रंथ है। जीवंधर कुमार, जिस दिन मां के पेट में आया उसके बाद पिता पर विपत्ति आ गई। पिता का राज्य छिन गया। मां को उनको अलग ढंग से अपने गर्भ को पुष्ट करना पड़ा, सब कुछ छोड़कर गुप्त रूप से निकलना पड़ा। क्या करें? मां के जीवन पर भी खतरा है पर क्या करें, बच्चे का तो कैसे भी जीवन बचाना है। कहां पर प्रसूति हुई? श्मशान में। श्मशान में किस पर? पत्तियों पर। एक गरीब-गुरबे के घर में भी बच्चा जन्मता है तो एक गदरी तो बिछ जाती है। वहां तो वह भी नसीब नहीं हुई। श्मशान में मां ने जन्म दिया और बच्चे को जन्म देने के बाद उसकी सुरक्षा के भाव से उसे एक तरफ रख दिया और खुद झाड़ियों की ओट में छिप गई। अब जो कर्म खेल खिलाएगा, खेल खेलेंगे क्या करें? बेटा है अच्छा, लेकिन मुसीबत सिर पर है। कैसे भी करके बेटा जी जाए, बच जाए, उसका लालन-पालन हो जाए। देखो कर्म का खेल और उसी समय एक सेठ अर्हतदास, उसको एक मृत पुत्र हुआ उसका अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान आया और जैसे ही बेटे के अंतिम संस्कार के लिए आया देखता है एक सर्वगुणसंपन्न बच्चा सत्य-प्रसूत बच्चा मस्ती से हंस रहा है, खेल रहा है ततक्षण उसका ममत्त्व उसके प्रति उमड़ा और मृत पुत्र का तो दाह संस्कार किया और इस पुत्र को अपने गले से लगाया। घर आकर अपनी धर्म पत्नी से कह दिया हमें धोखा हो गया था, हमारा बेटा मरा नहीं था, जिंदा था, यह हमारा असली बेटा है। देखो, कैसा खेल पाप ने खिलाया? राज छुड़ाया, पिता को छुड़ाया, मां को ऐसा लाचार किया कि दूध तक नहीं पिला पाई, एक पल भर को देख भी नहीं पाई और झाड़ियों के बीच उसका जन्म हुआ, श्मशान में जन्म हुआ। कासे की थाली भी बजाने वाला कोई नहीं था लेकिन उसी समय पुण्य का उदय आया, उसको संरक्षक मिल गया। ऐसा पिता मिल गया जो नगर सेठ था। पूरी कहानी पढ़ना, छत्र चूड़ामणि अद्भुत ग्रंथ है। उसने राज्य भी पूरा पा लिया। यह खेल है कर्म ऐसे ही खेल खिलाता है, पुण्य पाप का खेल है। अपने जीवन में झांक कर देखना, कई बार ऐसा हुआ होगा, ऐसे निमित्त बने होंगे कि कोई पापोंदय आया, तुम्हारे साथ कोई प्रतिकूल निमित्त खड़ा हुआ, कोई विपत्ति आई और साथ में पुण्य का उदय आ गया उसने सपोर्ट कर दिया, संभल गए। एक सज्जन ने बताया उनका एक भयानक एक्सीडेंट हुआ। झारखंड के सुरेश जी जैन, मध्य प्रदेश में अष्टा और सिहोर के बीच उनका कुछ समय पूर्व एक्सीडेंट हुआ। रात में एक्सीडेंट हुआ और दो ही प्राणी थे। एक कार एक्सीडेंट में दोनों के दोनों गंभीर रूप से घायल और संयोग से वहाँ से एक पुलिस इंस्पेक्टर निकला। उसने खुद इनिशिएटिव लिया और उनको तुरंत सारा साधन सुलभ करवाया और उनको हॉस्पिटलाईज किया। उनके घर वालों को इन्फॉर्म किया, घरवालों को आने में टाइम लगा तब तक सारी व्यवस्थाएं की। उन्होंने कहा- महाराज! हमारा एक्सीडेंट हुआ यह मेरा पापोदय है। यह मेरा पुण्य था कि वह इंस्पेक्टर हमारा लिए मसीहा बनकर हमारे पास आ गया। अगर घंटा दो घंटा नहीं आया होता तो हमारी जीवन लीला समाप्त हो गई होती। आज सलामत हैं। कई लोगों के साथ ऐसा होता है यह खेल पुण्य-पाप का खेल है। घबराया मत करो, खेल को एक तरह खेल की तरह खेलो, आनंद लो। अच्छा है तो खेलो, बुरा है तो खेलो। परिणामों की विचित्रता, हमारे परिणाम अच्छे हैं, हम अपने आप को स्थिर बनाने की क्षमता रख लें तो इन परिणामों का महात्म कुछ ऐसा है कि कर्म चाहे कैसा भी खेल क्यों नहीं खिलाए तुम्हारा चित्त उससे प्रभावित नहीं होगा। कर्म चाहे कितने भी दुख क्यों ना दे तुम्हारा मन कभी दुखी नहीं होगा। महापुरुषों ने इसी की बदौलत अपने जीवन को सुखी बनाया। और जो फ्रंट में हो उसको फेस करो। जो सामने हो उसका सामना करो। सामना करोगे तो जीवन सुखी बना रहेगा, कभी दुखी नहीं होगा और भागोगे तो जीवन दुखी होगा। यह बताओ, तुम्हारे सामने दुख आता है तो तुम क्या करते हो, तुम दुखों का सामना करते हो या रोना रोते हो? क्या करते हो? महाराज! भोगते हैं। जैसे तैसे भोगो मत, सामना करो, सामना करने का मतलब जागकर भोगो, जागते-जागते भागो तो जीवन का आनंद है, तो जीवन का मजा है। सामना कीजिए, अरे! अब कैसे करें? मेरे साथ ऐसी स्थिति हो गई। है भगवान! मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? हमने अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं किया, ना मैंने कभी किसी का गलत किया, ना मेरे पिता ने गलत किया, ना मेरे बच्चों ने गलत किया, पता नहीं यह क्यों हो गया? अपनी और हिस्ट्री देखो तो पता लग जाएगा कि क्या हुआ? एक बार बाप बेटे पर नाराज हो गया। बाप बेटे पर नाराज हुआ और नाराज होकर उल-जुलूल बोलने लगा। बेटे ने कहा- आप भी गलती करते थे तो आपके पिता ने आप को डांटा था क्या? हां, मेरे पिता ने मुझको डांटा था। क्या आपके पिताजी ने कभी गलती करी तो उनके पिताजी ने उनको डांटा था क्या? हां, मेरी पिताजी के पिताजी उनको डांटते थे। पिताजी के पिताजी कभी गलती करते थे तो उनके पिताजी डांटते थे क्या? पर बेटा! तू यह पूछ क्यों रहा है? मैं तो अपने खानदान की हिस्ट्री देख रहा हूं कब से परंपरा चल पड़ी है। मैं देखना चाह रहा हूं कि मेरे खानदान में गुंडागर्दी कब से चल रही है? हिस्ट्री देखो, कहीं ना कहीं से तो तुम्हारा ही अपना डिफ़ॉल्ट है उस डिफ़ॉल्ट को खत्म करो और अपने जीवन में आगे बढ़ो। क्या बोला? फैक्ट, फेथ, फेस। फेस कैसे करना है? जो फ्रंट में आए उसके प्रति अवेयर रहो, केयरफुली एफर्ट करो। अपना प्रयत्न जारी रखो, पुरुषार्थ जारी रखो। दुख भी सुख में बदल जाएगा, अशांति शांति में परिवर्तित हो जाएगी, विपत्ति संपत्ति में बदल जाएगी और विसंगति संगति में परिवर्तित हो जाएगी। आप देखिए, यदि आपके हृदय में फैक्ट के प्रति फेथ है तो फेस करने की ताकत आपके पास आएगी। जब फेस करोगे तो फ्रेश रहोगे, तरोताजा रहोगे। आनंदमग्न, फ्रेश रहना चाहते हो कि नहीं? या मूड फ्रेश करना चाहते हो? प्रवचन भी मूड फ्रेश करने के लिए सुनने आते हैं? क्यों भाई? प्रवचन में क्यों आते हो मूड फ्रेश करने के लिए? महाराज, जिंदगी को फ्रेश करने के लिए प्रवचन में आते हैं तो कल से प्रवचन में आने की जरूरत नहीं है यह चार बातें ध्यान में रखो जिंदगी भर फ्रेश बने रहोगे। कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। फैक्ट, फेथ, फेस, फ्रेश ये चारों बातें अपने हृदय में स्थापित करें और अपने जीवन को उसी अनुरूप बढ़ाने की कोशिश करें, हमेशा फ्रेश रहे। ऊपर की तीन बातें जिसके जीवन में रहती हैं उसका जीवन फ्रेश रहता है जिसके जीवन में यह तीनों बातें नहीं रहती वह हमेशा क्लेश में रहता है। उसके अंदर कोई फ्रेशनेस नहीं रहती। फ्रेशनेस रह ही नहीं सकती कई तरह के क्रेश उसके मन में आते हैं और हमेशा जीवन टकराव भटकाव से भरा रहता है, जीवन में एक प्रकार की उलझन बनी रहती है। हम अपने जीवन में आगे बढ़े, अपने जीवन को ऊंचा उठाएं। इन सारे तथ्यों को समझ करके उसी क्रम में अपने आप को आगे बढ़ा सकें, इसी शुभ भाव के साथ, समय आप सब का हो गया है, इसलिए अब केवल एक लक्ष्य रखें, अगर रहना है तो फैक्ट पर फेथ रख कर जीवन में जो सामने आये उसे फेस करना है। यह जीवन का लक्ष्य बनाकर चलेंगे तो निश्चित है अपने जीवन को परम ऊंचाई तक पहुंचाने में समर्थ बनेंगे।
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