जिस काल में भगवान आदिनाथ कैलाश पर्वत से मोक्ष गये उस काल में जो भी अनन्तानन्त भव्य आत्माएँ निर्वाण को प्राप्त हुईं, क्या वे सब उसी कैलाश पर्वत से निर्वाण को प्राप्त हुईं? या वे शिखरजी, पावापुरी या किसी और सिद्ध क्षेत्र से निर्वाण को प्राप्त हुईं? इसी तरह भगवान महावीर के काल में जितनी भी भव्य आत्माएँ मोक्ष गई या निर्वाण को प्राप्त हुईं वो वहीं से या और किसी जगह से निर्वाण को प्राप्त हुईं?
अगर पूरे मनुष्य लोक में निर्वाणोपलब्धि की संख्या हम देखते हैं तो विदेह क्षेत्र में सबसे ज्यादा निर्वाण की प्राप्ति होती है। विदेह क्षेत्र में सिद्ध बनने का द्वार सदैव खुला रहता है। भरत और ऐरावत क्षेत्र में दुखमा-सुखमा नामक चौथे काल में ही मुक्ति का काल प्रशस्त होता है। इसलिए जब हम सिद्धों की संख्या गिनते हैं तो इस दृष्टि से विदेह क्षेत्र का स्थान सर्वोपरि होता है। लेकिन जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र या ऐरावत क्षेत्र की बात करते हैं तो भरत और ऐरावत क्षेत्र में सबसे ज्यादा सिद्धि सम्मेद शिखर से होती है। सम्मेद शिखर जी शाश्वत सिद्ध क्षेत्र है और ये सदा से मुक्ति का मार्ग है। जब भी होगा तो सम्मेद शिखर से ही होगा। हमारे समस्त तीर्थंकरो के निर्वाणों की उपलब्धि नियोग स्थल सम्मेद शिखर है इसलिए सम्मेद शिखर में ही सबसे ज्यादा निर्वाण की प्राप्ति हुई
आपने कहा -‘भगवान आदिनाथ ने जिस काल में मोक्ष को प्राप्त किया उस काल में अनन्त भव्य आत्माओं ने मुक्ति पाई’; पर एक साथ मुक्ति को प्राप्त नहीं किया। एक साथ यदि जीव मोक्ष को प्राप्त करे तो १०८ जीव जा सकते हैं; और छः माह आठ समय में छ: सौ आठ जीव मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं। इसके बाद अन्तराल ज़रूर होता है। जब हम ऊपर टोकों की वन्दना करते हैं तो उसमें बोलते हैं, ‘इस टोंक से इतने कोड़ा-कोड़ी मोक्ष को गये’ इसका तात्पर्य ये नहीं समझना कि वे सभी एक साथ मोक्ष गये। वे सम्बन्धित तीर्थंकर के मोक्ष काल में मोक्ष गये ऐसा समझना चाहिए, भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर पर्यन्त।
वर्तमान में जो ये तीर्थ काल चल रहा है उस तीर्थ काल का काल ब्यालीस हजार साल कम, एक कोड़ा-कोड़ी सागर है। एक सागर ही अनन्त वर्षों का होता है, तो फिर कोड़ा-कोड़ी तो कितने असंख्य वर्षों का होगा। उस कालावधि में इतने मुनियों को निर्वाणोपलब्धि हुई है, इसी तरीके से देखना चाहिए।
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