रात्रि-भोजन त्याग या मंदिर में प्रक्षाल- किसमें अधिक पुण्य है?

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शंका

रात्रि भोजन न करने में ज़्यादा पुण्य है या मन्दिर में प्रक्षाल करने में?

समाधान

मन्दिर में प्रक्षाल करने में पुण्य है और रात्रि में भोजन करने से पाप है। कोई रात्रि भोजन नहीं करता तो वो पुण्य नहीं करता, पाप से बचता है। आप इस भ्रम में मत रहना कि मैंने रात्रि भोजन का त्याग कर दिया तो बहुत बड़ा पुण्य कर लिया। आपने पुण्य नहीं किया, आप पाप से बचे क्योंकि रात्रि भोजन एक महान पाप है और भगवान का पूजन अभिषेक किया तो उसमें पुण्य पाया। 

अब प्रश्न है कि पहले हम रात्रि भोजन छोड़ें या भगवान का पूजन करना शुरू करें। दो चीजें होती हैं। आप लोग गाड़ी चलाते हैं, रेड सिग्नल भी दिखता है और ग्रीन सिग्नल भी दिखता है। रेड सिग्नल में आपको क्या करना पड़ता है? गाड़ी को तुरन्त रोकना पड़ता है और जब ग्रीन सिग्नल आता है, तो चलना पड़ता है। चलाना जरूरी होता है क्या? ग्रीन सिग्नल के बाद गाड़ी को चलाओ या न चलाओ, ये आप की मर्जी है, आप रोक भी सकते हैं, बढ़ा भी सकते हैं, कोई दिक्कत नहीं है। पर रेड सिग्नल आये और आप गाड़ी न रोको तो चालान या एक्सीडेंट हो सकता है। रेड सिग्नल जहाँ दिखाया जाये वहाँ गाड़ी को रोक देना अनिवार्य है और ग्रीन सिग्नल पर आप गाड़ी रोकें या न रोंके ये आपकी मर्जी है, तो धर्म के विषय में जो बातें निषिद्ध हैं वो सब रेड सिग्नल है, वहाँ गाड़ी रोक दो। जो भी वर्जनाएँ जिनका भी निषेध किया गया है समझ लो कि वर्जनाएँ हैं तो गाड़ी रोक दो और जो बातें करने की बताई गई हैं वो करो, चलेगा। ग्रीन सिग्नल में गाड़ी चलाओ तो ठीक और न चलाओ तो ठीक है।

लेकिन आप लोग उल्टा करते हो। एक व्यक्ति से कहूँ कि रात्रि भोजन छोड़ दे तो बोलेगा कि ‘महाराज जी इसमें कठिनाई है’ और उससे कहूँ कि अभिषेक पूजन कर लो तो करने को तैयार है। वो ग्रीन सिग्नल में गाड़ी दौड़ाने को तैयार है पर रेड सिग्नल में गाड़ी रोकने को तैयार नहीं है। ऐसे तो कभी भी एक्सीडेंट हो जायेगा। इसलिए जो मूलभूत चर्या हैं उनका पालन करो। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जिनको सुबह घर से निकलना है और रात्रि को ८-९ बजे लौटना है, वे कैसे रात्रि भोजन छोड़ सकते हैं? ये तुम्हारी मजबूरी है, यदि रात्रि भोजन न छोड़ सको तो कोई बात नहीं, मन में भावना भाओ कि कब मेरी अनुकूलता आए जब मैं ऐसी बुराइयाँ, न केवल रात्रि भोजन अपितु अन्य प्रकार की भी बुराइयाँ जैसे:- मद्यपान, नशा या अन्य प्रकार के नॉनवेज, जिनका जीवन में प्रवेश हो गया है, उन सभी चीजों को छोड़ सकूँ। इनको तो प्रतिज्ञा पूर्वक त्याग करो, रात्रि भोजन यदि नहीं छूट पा रहा है, तो रात्रि में भोजन करने के बाद मन में ग्लानि होनी चाहिए, गर्व नहीं। 

आज एक बच्ची से पूछा कि ‘किस होस्टल में रहती हो?’ मुरादाबाद में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी एक बहुत बड़ी मिसाल है, सारे जैन समाज के लिए। मैंने पूछा कि “वहाँ भोजन कब मिलता है? दिन में मिलता है या रात्रि में मिलता है?” बोली कि ‘महाराज जी दिन में भी मिलता है और रात्रि में भी मिलता है, पर हम लोग तो रात्रि में प्रेफर करते हैं।’ हमने कहा- “हद हो गयी! तुम जैन और वहाँ जाकर जहाँ दिन में उपलब्ध होने के बाद भी वहाँ रात्रि में प्रेफर कर रही हो तो इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी? तुम को दिन में मिल रहा है, तो दिन में ही प्रेफर करना चाहिए और अपनी दिनचर्या को एडजस्ट करना चाहिए।” ‘महाराज जी, हमने तो ऐसा सोचा ही नहीं। हमने सोचा कि सब चलता है।’ नहीं! अपनी प्राथमिकताएँ ठीक करो। जब कोई मजबूरी हो तब कोई गलती कर दो, चलेगा। लेकिन जानबूझकर कोई गलती करोगे तो वो कभी भी चलेगा नहीं। इसलिए मजबूरी की बात अलग है लेकिन शौक के लिए करना गलत बात है। 

मेरे कहने का भाव ये मत समझना कि यदि हम रात्रि भोजन नहीं छोड़ सकते हैं तो भगवान का पूजन अभिषेक न करें, ऐसा नहीं कह रहा हूँ। रोज भगवान का अभिषेक पूजन करते समय एक ही भावना भाओ कि भगवान ये मेरे जीवन की एक बला है, मेरी ऐसी शक्ति और मेरा पुण्य का ऐसा उदय आये और इस बला से मैं मुक्त हो जाऊँ, मुझे अनुकूलता मिले और मैं आपका सच्चा अनुयायी बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकूँ।

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