मंदिर में कैसे कपड़े पहनें और कितना सजें?

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शंका

जब हम भगवान की आराधना गीले द्रव्य से करते हैं तो क्या हमारे वस्त्र भी सोला के होने चाहिए या जो रोज हम पहनते हैं उनमें कर सकते हैं?

समाधान

भगवान की पूजा आराधना के लिए वस्त्रों की शुद्धि अवश्य रखनी चाहिए। आप लोग बोलते हैं-

द्रव्यस्य शुद्धि-मधि-गम्य यथानुरूपं, भावस्य शुद्धि-मधिका-मधि-गंतुकामः।

आलंबनानि विविधान्-यवलम्ब्य वल्गन्, भूतार्थ-यज्ञ-पुरुषस्य करोमि यज्ञम्॥ 

द्रव्य शुद्धि के अन्तर्गत आप अपने शरीर की भी शुद्धि रखें। वस्त्रों की शुद्धता रखनी चाहिए। यदि कोई मजबूरी हो तो बात दूसरी है, नहीं तो मन्दिर आप जाओ तो शुद्ध वस्त्र पहनकर जाओ। 

एक बात बताता हूं जिसका पालन बहुत कम लोग करते हैं। आप बाजार से कोई भी कपड़ा लेकर आते हैं और अपनी अलमारी में रख लेते हैं या सीधे उसे पहनकर प्रयोग करते हैं, मन्दिर भी आ जाते हैं। चाहे साड़ियाँ हों, चाहे कपड़े हों, वो कपड़े सीधे अलमारी में रखने लायक नहीं हैं, क्योंकि आप जहाँ से उसे खरीदकर लाए हो उस कपड़े को किस-किस ने छुआ, आपको पता है क्या? कई रजस्वला महिलाओं ने भी उसे छुआ होगा? कभी आपने इतनी बारीकी से ध्यान किया? बहुत कम लोग ऐसा विचार करते हैं। किसने-किसने छुआ होगा उसको, बनाने से लेकर बेचने तक! और आपने उसे घर में रख लिया और उस कपड़े को और उसी तरह के दूसरे कपड़ों के साथ आप प्रयोग कर रहे हो, ये शुद्धता नहीं है। इसलिए अपनी अलमारी में जब तक आप उन्हें शुद्ध न करें तब तक वस्तु न रखें और किसी भी कार्य में बिना धोए उन्हें न पहनें। मन्दिर में भी जब आप हों तो धुले वस्त्र, शुद्ध वस्त्र पहनकर ही भगवान की पूजा अर्चना करें। सीधे अलमारी से या धोबी से धुले हुए कपड़े लाकर आप यदि सीधे मन्दिर आ रही हैं तो ठीक नहीं। 

मन्दिर में सज-धज कर आने की आवश्यकता नहीं। मन्दिर में तो शुद्ध बनकर आने की आवश्यकता है। शुद्ध वस्त्र पहनकर आओ और शुद्ध मन लेकर के जाओ तब भगवान की पूजा से अपने मन में शुद्धि पा पाओगे। इसलिए मन्दिर के लिए ज्यादा तड़क-भड़क नहीं। लगता है कि सारी साड़ियाँ तो मन्दिर में ही दिखती है; बड़ी बुरी हालत है। इसके कारण क्या होता है? बुरा मत मानना मन्दिर आने की तैयारी में ड्रेसिंग टेबल पर २० मिनट और भगवान की बेदी में दो मिनट? क्या कर रहे हो? दर्शन करने जाते हो कि दर्शन देने? विचार करो! 

एक व्यंगकार की दो लाइनें। थोड़ा चिंतन करना, उसने लिखा –

देवियाँ मन्दिर में पहुँची बाल खिराए हुए, देवता मन्दिर से निकले और पुजारी हो गए।

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