धर्म क्षेत्र में राजनीतिक और असंयमी लोग आ रहे हैं। वे धर्म के बारे में विपरीत निर्णय न लें, इसके लिए आप क्या निर्देश देंगे?
निश्चित रूप से पहले धर्म और समाज के प्रमुख स्थानों में वे ही लोग थे जो धर्मात्मा होते थे, स्वाध्यायशील होते थे, धर्मभीरू होते थे। इसका ये परिणाम था कि पहले मन्दिरों में या सामाजिक व्यवस्थाओं में विकृतियाँ नहीं आती थीं। आज कल समय बदल गया, इसके कारण धार्मिक लोगों को वहाँ स्थान मिलना कम हो गया, तब धनाढ्यों और राजनीतिक वर्चस्व रखने वाले, इसमें आगे आने लगे। इसका ये परिणाम है कि उन्होंने धार्मिक स्थानों को, अपनी अहंकार पूर्ति के मंच के रूप में स्वीकार कर लिया। ये एक प्रकार के पाप का आस्रव हो रहा है। इसका दुष्परिणाम और भी कई स्थानों पर देखने को मिला है; जिन लोगों के जीवन में धर्म की सच्ची समझ नहीं उन्होंने अपने रहते धार्मिक संस्थानों में भी बहुत सारे अनाचार करवा दिये। उस अनाचार को देखते हुए भी प्रतिकार नहीं किया गया। ये बड़ा पाप का कार्य है। इसलिए समाज में जागरूकता की ज़रूरत है।
आजकल तो चुनावी प्रक्रिया है। चुनावी प्रक्रियाओं का परिणाम ये है कि अच्छे लोग भी कभी इन चुनावों में भागीदारी रखना ही नहीं चाहते हैं। ऐसे-ऐसे लोग चुन कर आ जाते हैं जिनको धर्म से कोई मतलब नहीं है। मैंने कई जगह देखा कि जहाँ चुनाव के समय बड़ी सरगर्मियाँ रहती हैं। मुझे पता चला कि ३१ या २१ आदमी की कार्यकारणी बनती है। मैंने एक से जब पूछा कि ‘इतने सारे लोग यहाँ समाज के चुनाव में उत्सुक लगते हैं। क्या मामला है? लोगों के अन्दर समाज सेवा की भावना बड़ी प्रबल दिखती है।’ लोगों ने कहा कि ‘चुनाव तक इनकी सक्रियता है। इसके बाद जब अगला चुनाव घोषित होगा तभी ये सक्रिय होंगे। इनमें ऐसे लोग ज्यादातर जीत कर आयेंगे जो साल भर मन्दिर भी नहीं जाते हैं।’ वो क्या करेंगे इस धर्म का और समाज का?
मैं आप लोगों से कहना चाहता हूँ कि धार्मिक संस्थानों में आप तब ही भागीदार बनिये जब आपके अन्दर धर्म की समझ हो और समय हो। यदि आप किसी धार्मिक संस्थान से जुड़ते हों और उस संस्था के प्रति न्याय नहीं करते हैं तो आप पाप के भागीदार हैं। धर्म की समझ के अभाव में आपके रहते हुए या न चाहते हुए भी यदि कुछ अनपेक्षित व अनुचित धर्म विरूद्ध कार्य हो जाता है, तो उस पाप के भागीदार भी आप हो। इन सब का ऐसा पाप बताया है कि व्यक्ति के वंश तक का विनाश हो सकता है। ऐसा कृत्य कभी मत करो। तुमको राजनीति करनी है, तो राजनीतिक मंचों पर जाकर जमकर राजनीति करो। तब कुछ कमाओगे भी। धर्म क्षेत्र में यदि राजनीतिक मानसिकता लेकर कोई व्यक्ति आता है, तो अपना समय, शक्ति व संसाधन लगाकर पापार्जन करने का भागीदार बनता है। ये बहुत घाटे का सौदा है। ऐसा कभी मत करो। उन लोगों को करने दो जो इसमें आगे हैं, और जो भी करें वो बड़े पुनीत भाव से करें, पुण्योपार्जन के निमित्त से करें तो ये बहुत अच्छा कार्य होगा।
योग्य हाथों में धार्मिक संस्थानों की भागदौड़ देनी चाहिए। ताकि हमारे धर्म और संस्कृति की मर्यादा पलती और बढ़ती रहे। मैं इसमें यही कह सकता हूँ। बाकी समाज की व्यवस्था है।
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