आज कल जैन उपनाम (surname) का उपयोग बिना जैनाचार का पालन किये होने लगा है, ये कहाँ तक सही है? बाजार में भी प्रचलित हो रहा है, जैसे जैन ‘पाव भाजी’, जैन चाईनीज़ फूड आदि।
आज का युग हर चीज के लिए ब्रांड बनाने का है। जैन ब्रांड बन गया है इसलिए जैन लिखते हैं। इसका एक फायदा है अगर जैन ‘पाव भाजी’ है, तो इसका तात्पर्य है कि इसमें कुछ भी ऐसी चीज नहीं है जो जैन धर्म के विरुद्ध हो’ जिसमें आलू, प्याज, लहसुन आदि नहीं हो शायद इसलिए करते हों?
मैं चम्पापुर से पावापुर की ओर विहार कर रहा था। रास्ते में ‘जैन भोजनालय’ का काफी लम्बा-चौड़ा advertisement (विज्ञापन) देखा, मीलों तक! हम को देखकर के आश्चर्य हुआ कि सब जगह लिखा है – ‘जैन भोजनालय आगे है’, ‘जैन भोजनालय आगे है’, ……..। नज़दीक पहुँचे तो देखा कि एक छोटा सा ढाबा ही था। लेकिन जैन भोजनालय का इतना महिमा मण्डन क्यों? मैंने पूछा तो कोई बोला ‘महाराज जी! इस रास्ते पर जैन यात्री रोज जाते हैं, और उनका लगभग यही समय खाने का होता है।’ हमने पूछा कि ‘क्या ये जैन है?’ बोले- ‘नहीं! ये जैन नहीं है लेकिन इसका भोजन जो बनता है वो जैनों के अनुकूल बनता है इसलिए उसने नाम दे दिया जैन भोजनालय।’
ये एक ब्रांड बन गया। इसमें कोई हर्ज नहीं है। जैन धर्म की प्रभावना में ये सहायक है। लेकिन हाँ! तब शर्मिन्दगी का अनुभव करना पड़ता है जब नाम तो जैन का हो और काम गंदा हो। तो जो भी जैन शब्द का प्रयोग करें वो जैन धर्म की goodwill (साख) को खण्डित न होने दे। जैन धर्म की गुडविल को मेन्टेन कर के चलें। ऐसा कोई कार्य न करे जो जैनत्व को कलंकित करता हो। अगर ऐसा करते है, तो कोई हानि नहीं है।
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