शादी में मुहूर्त देखना कितना उचित

150 150 admin
शंका

शादी में मुहूर्त देखना कितना उचित

समाधान

देखिये, जहाँ तक विवाह आदि आप लोगों के हिसाब की जो मांगलिक क्रियाएं हैं, उनके मुहूर्त का सवाल है, मुहूर्त का मैं निषेध नहीं करता। पर मुहूर्त-शास्त्र जब मैंने पढ़ा, तो मैं आपको बताऊँ उसमें क्या लिखा? एक पंचकल्याणक का मुहूर्त सोधना हो, तो १०८ बातें सोधने का प्रसंग आया। अब १०८ बातों को सोधना हो तो, वो तो ५-७ बरस में एक बार होगा। तो फिर पंचकल्याणक ही नहीं होंगे, कैसे देखेंगे? तो फिर बोला ऐसा करो, अधिक से अधिक हो जाए। बोले वो भी नहीं हो तो? बोले एक काम करो, नेगेटिव ना हो। बोले उसके बाद भी अगर नेगेटिव हो तो? बोले एकदम काम जरूरी नेगेटिव ही नेगेटिव आ रहे, काम करना है तो लग्न-बल से कर लो। के लग्न-बली भी नहीं हो तो? कहे नवमांश निकाल लो। कहे वह भी नहीं हो तो और काम करना है जरूरी? तो कहा मनोबल से कर लो। मैंने उसी दिन वो किताब बंद कर दी। यह बात आखिरी में बताई, हमने कहा यही पहले बताई होती तो मैं इस किताब को पढ़ता काहे को? 

ज्योतिष बहुत flexible है। द्रव्य-क्षेत्र-काल- भाव का असर पड़ता है। कोशिश करें मुहूर्त मिलाने का, अगर मुहूर्त नहीं मिलता है तो भी अपना मनोबल ऊँचा रखो, दुर-मुहूर्त भी टलते हैं, भगवान के नाम से कुमुहूर्त टलते हैं। 

जहाँ तक किसी के शादी विवाह के लिए रात्रिकालीन लग्न की अनिवार्यता का सवाल है, मुझे वह बात भी नहीं जँचती। क्यों? क्योंकि ६ लग्न रात में होते हैं, ६ दिन में होते हैं। दिन में भी स्थिर लग्न होते हैं रात में भी होते हैं। यह तो वैदिकों का अनुकरण है जो रात में सोधते हैं और सोधने वाले भी ज्यादातर वही हैं। दिन में ही करें और रात्रि में यंत्र के समक्ष पूजा करके भगवान की असाधना करने की अपेक्षा दिन में आप बिना मुहूर्त के भी भगवान की पूजा करोगे तो तुम्हारा कार्य ज्यादा मांगलिक तरीके से संपन्न होगा। 

मैं आपको बताऊँ २४ तीर्थंकर और जितने भी महापुरुषों के चरित्र पुराणों में निबद्ध हैं, मैंने सब के विवाह के प्रसंगों को बहुत बारीकी से देखा। एक का भी विवाह रात में नहीं हुआ। सब का विवाह दिन में हुआ और सब सक्सेस हुए क्योंकि कोई का डायवोर्स नहीं हुआ। हुआ? तो फिर कहाँ ढूंढ रहे हो तुम लोग? तुम तीर्थंकरों के अनुयायी हो, तीर्थंकरों के हिसाब से चलो? इसलिए ये कुपरंपरा है और रात्रि कालीन इस प्रक्रिया से समाज को बचना चाहिए, बचाना चाहिए। 

अब भगवान के फेरे, भैया सुनो ये बात है। फेरे तो जहाँ जिसके लगाते हो उसी के लगाना। भगवान के फेरे लगाओ, कब लगाओ? जब भगवान की भक्ति करो। देखो सात फेरे आप लोग लगाते हो साथ में और सात फेरे भगवान के भी लगाए जाते हैं। बुंदेलखंड में, मध्यप्रदेश में, पंचकल्याणक के बाद गजरथ होता है। गजरथ में भगवान को विराजमान करके, उस मंडप के सात फेरे सारे जनता लगाते हैं। ये क्यों लगाते हैं सात मालूम? ये सात का चक्कर बड़ा विचित्र, बड़ा स्पेशल है। इंद्र को जैसे भगवान के कल्याणकों का आभास होता है, चिन्ह प्रगट होता है, सात कदम चल कर के प्रणाम करता है। ये सात क्या है? सात पूर्ण प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। आप लोग सात लगाते हो अग्नि की साक्षी में के अब हम दोनों मिलकर एक हो गए। इसलिए दोनों पल्लू बांध के रखते हो। एक हो गये, समझ गए? लेकिन एक होते नही हैं, मुश्किल तो यही है। इसलिए नहीं रह पाते कि आजकल फेरे के समय में लोग मजाक ज्यादा करते हैं। और रात्रि में होने के बाद इतना फूहड़पन होता है कि मत पूछो। जबकि विवाह का सबसे मांगलिक क्षण वही होता है। उस समय किसी भी प्रकार की हंसी-मजाक नहीं होना चाहिए, भोंडापन नहीं होना चाहिए। मांगलिक वातावरण होना चाहिए। शुद्ध रीति से मंत्रोच्चार होना चाहिए। लोगों को उसमें  शामिल होना चाहिए, क्योंकि विनायक यंत्र वहाँ सामने है। विनायक यंत्र रखते हैं की सिद्ध यंत्र? विनायक यंत्र। तो यंत्र रखते हैं। हमको तो पता नहीं, न हमने करी है ना कराई है। तुम्ही लोग जानो। और इनसे पूछ रहे हैं, इनको भी पता नहीं। उनको पता है, कौन सा यंत्र रखते हो? विनायक यंत्र रखते हैं। तो चीज़ें हैं कन्फर्म कर लेने दो, कहेंगे महाराज को यह भी पता नहीं। भैया बाकी बातें हमको पता नहीं है। तो यह असाधना कतई उचित नहीं है, इनसे बचना चाहिए, और बचाने का प्रयास करना चाहिए। ताकि आप इन क्रियाओं को… मैं ये कह रहा था – ये जो सात परिक्रमा आप करते हैं इस बात का प्रतीक है कि हम दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित हैं। पूर्ण रूप से प्रेम हैं, समर्पण है। तीर्थंकर भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करने के बाद सात परिक्रमा इसलिए लगाए जाते हैं ‘भगवान हमने आपकी प्रतिष्ठा कर दी, अब हम आपके हो गए, आप हमारे हो गए। हम सात जन्म तक आपका साथ नहीं छोड़ेंगे।’ तब तो सातवाँ परम स्थान प्राप्त करोगे। इसलिए सात फेरे भगवान के भी लगाते हैं। लेकिन कैसे? जब प्रतिष्ठा आदि करते हैं तब। और ध्यान रखना शादी के फेरे में पल्लू बाँध के करो और भगवन के इस फेरे को करो तो पल्ला हटाकर करो क्योंकि भगवान के फेरे पल्ला छोड़ने के लिए किया जाता है और शादी का फेरा जो फेर में पड़ने के लिए लगाया जाता है। इसलिए भगवान के पास आओ तो छोड़ कर आओ ताकि बंधन से मुक्ति पा सको। 

Share

Leave a Reply