माँसाहारी व्यंजनों के शाकाहारी विकल्पों का प्रयोग कितना उचित?
वर्तमान में खानपान को लेकर बहुत बड़ा परिवर्तन आया है, ज़्यादातर चाइनीज़ व्यंजन अब आपके यहाँ आने लगे हैं और उन सब का लोग शाकाहारी विकल्प बनाने लगे हैं। मेरी राय में यह एक प्रकार से हिंसा है, इससे हमें बचना चाहिए। जैसे-टिक्का, कोफ़्ता, वेजीटेबल क़बाब, बिरयानी आदि इन शब्दों में भाव हिंसा है। इनका परहेज़ करना चाहिए क्यों कि ऐसा करने से आपके बच्चों के अबोध मन पर भी गलत संस्कार पड़ेगा। इनका प्रयोग मत कीजिये। परम्परागत शाकाहार और विशुद्ध शाकाहार से सम्बन्धित चीज़ो का ही सेवन कीजिए। उन्हें प्रचारित कीजिए।
हमारे यहाँ खानपान की अनगिनत चीजें हैं।उनके पास तो गिनती की चीजें हैं। आप उन्हें हतोत्साहित कीजिए। बल्कि मैं आप सभी लोगों को सलाह दूँगा कि किसी भी कार्यक्रम में आप जाते हैं, और वहाँ इस तरह की चीजें आपको दिखती हैं तो आप उन्हें यह फीडबैक दें कि ‘कृपया हमें ऐसी चीजें न दें। हमें विशुद्ध शाकाहारी व्यंजन ही दें। हम शाकाहारी हैं इन सब चीजों को देखकर हमारी भावनाएँ प्रभावित होती हैं।’ उनका निषेध ही होना चाहिए। आजकल केक आम हो गया है। यह सब नकल है। क्या हमारे पास मिठाइयों की कमी है? आज की पीढ़ी तो उन्हें बनाना भी नहीं जानती, इन्हीं सब चीजों में रम गयी है। कुल मिलाकर जिसमें हिंसा की सम्भावना हो उस नाम का भी प्रयोग न करें।
अपने संस्कारों को पलट कर देखो, हमारे यहाँ सब्ज़ी के टुकड़े करते समय काटने शब्द का प्रयोग नहीं होता, सुधारने या बिनारने जैसे शब्दों का उपयोग होता है। ये हमारी संस्कृति है। माँसाहारी व्यंजनों के शाकाहारी विकल्प का सेवन करना भी अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा का पोषण करना है। इसलिए उन्हें हतोत्साहित करना चाहिये, इनके अन्धानुकरण से बचना चाहिए। अपने मूल व्यंजनों को प्रवर्तित करना चाहिए। जिससे मांस भक्षियों का शाकाहार की तरफ़ आकर्षण बढ़े और उससे बचें। ऐसा काम मत कीजिये कि आप या आपकी पीढ़ी उधर लुढ़क जाए।
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