औरत जब नए रिश्ते से बन्धती हैं, वह पहले पत्नी बनती है, फिर माँ, सास और दादी-नानी बनती है, तो मोह भी बढ़ता है और फिर ज़िम्मेदारी निभाने में धर्म-ध्यान कैसे करें?
बिल्कुल ठीक बात है, यही तो संसार है। औरत को आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। और अगर पॉजिटिव डायरेक्शन में चले जाए तो एक ही दिन में माता बन जाती है। एक औरत विवाह करती है, तो दो-चार बच्चों की माँ बनेगी और अगर संयम के रास्ते पर चले गई तो जगत माता बन जाती है। आदर्श मार्ग तो यही है उस मार्ग को अपनाना चाहिए। यह मोह का विस्तार है, संसार का विस्तार है। ऐसे सांसारिक दायित्त्व का निर्वाह करते हुए यदि व्यक्ति अपनी आत्मा के स्वरूप को पहचाने, आत्म जागृति का भाव बनाकर रखें और गृहस्थोचित क्रियाओं और कर्तव्यों का दृढ़ता से पालन करे तो काफी कुछ अपने जीवन में सफलता ला सकती है। इसके लिए स्वाध्याय, सत्संग और नियमित सम्यक-चिंतन आवश्यक है, जो व्यक्ति के भीतर के वैराग्य भाव की न केवल पुष्टि करें अपितु उसकी वृद्धि भी करें।
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