मैं ससुराल में सबसे छोटी बहू हूँ, मेरी जिठानियाँ मुझ पर हर वक्त रौब चलाती हैं, ऑर्डर फरमाती हैं, ताने देती है और सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। कुछ दिन तो सह लिया पर अब सहन नहीं होता। कभी-कभी जवाब दे देती हूँ, घर का माहौल तनावपूर्ण हो जाता है, आप ही उपाय बतायें जिससे सभी मिलकर रहें?
सबसे मिलकर वही रह सकता है जो सब चीजें सहकर जीए। आप घर की छोटी बहू हो तो छोटी बन करके ही रहो। बड़ी बहू है अगर वह अपना काम नहीं करती, आप उसकी परवाह मत करें। आप अपने काम को एँजॉय करें और यह मान करके चलें कि ‘भले मैं छोटी हूँ पर एक काम करने से मैं एक अच्छा कार्य कर रही हूँ, घर में शांति का वातावरण है और थोड़ी मेहनत करने से मेरा स्वास्थ्य भी अच्छा हो जाएगा।’ अगर आप इस बात को पॉजिटिव लेकर के चलती हो और आप की सहनशक्ति बढ़ती है, तो सारा घर कायल हो जाएगा। आज आप यह मानो कि ‘यह कार्य मैं अगर कर रही हूँ तो इसमें मेरा भी भला, सबका भला।’ इसमें बहुत अच्छा होगा।
एक परिवार की बात मुझे याद आई। परिवार में ऐसे तीन बहुएँ पहले से थीं और चौथी बहू बाद में आई थी। तीन बहुएँ ऐसी थी जिनमें रोज महाभारत होता था। घर भर के सारे पुरुष परेशान थे। सब की सब निकम्मी! कोई काम करना नहीं चाहती थी। सुबह की शुरुआत किच-किच से होती थी। घर भर के लोग परेशान थे। चौथी बहू के आने के पहले ही उसके कानों तक बात पहुँच गई कि यह घर तो बड़ा विचित्र घर है, तुम उसमें कैसे निर्वाह करोगी। विदा होते समय उसकी माँ ने उसे जो शिक्षायें और प्रेरणा दी, उसका उस पर विश्वास था। घर में आई, घर का वातावरण देखा, दो-तीन दिन तो जैसे घर की नई बहू कुछ करती नहीं और नौकर चाकर भी पर्याप्त थे, सारा काम हो गया लेकिन जब आने वाले दिनों में देखा यहाँ का तो मामला ही उल्टा-पुल्टा है। सुबह से कोई कुछ नहीं करे तो सबकी परवाह किए बगैर सुबह से अपने काम में लग गई। घर की सफाई वह खुद करने लगी, पानी वह खुद भरने लगी, घर का खाना वह खुद बनाने लगी और सारा नाश्ता-पानी से लेकर सब कुछ और करने लगी। उसका असर यह हुआ कि घर में रोज की अब किच-किच खत्म लेकिन अच्छे आदमी को भी भड़काने वाले लोग बहुत होते हैं। कुछ लोगों की यह मंशा होती है कि कोई सुख से न रहे, सकून से रहें अगर दूसरा तो उसके पेट में दर्द हो जाता है। एक बगल की पड़ोसन उसको भड़काने की इरादे से बोली- अरे! तुम इतना दब करके क्यों रहती हो? इतना दबने की क्या बात है, तू सबके अंडर में रहती है, सारा काम तुम खुद करती हो, इतना दबती क्यों हो? उसने बोला ‘बताओ क्या करती हूँ?’ ‘अरे मैं देखती हूँ, तू झाड़ू लगाती है।’ ‘अरे झाड़ू, मेरी माँ तो कहती थी जो घर में झाड़ू लगाती है उनके घर में दरिद्रता नहीं आती है। सफाई करने से दरिद्रता नहीं आती, गंदगी में दरिद्रता का वास होता है। मेरे को तो यह पता है कि मैं जितनी साफ स्वच्छ रहूंगी मेरे घर की दरिद्रता उतनी जाएगी और मेरे मन की दरिद्रता जाएगी, मैं समृद्ध होउंगी, मजबूत बनूँगी।’ ‘पानी भरती हो?’ ‘पानी किसके लिए भरते हैं पीने के लिए। पानी कौन पीता? प्यासा! प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम है, तो पुण्य का कर्म है, तो पुण्य तो हमको मिल रहा है, हम इस पुण्य के मौके को क्यों चूकें। फिर खाना मैं बनाती हूँ तुम लोगों को ऐसा लगता है। मैं खाना नहीं बनाती, मैं तो भूखे को भोजन कराती हूँ। मेरी माँ हमेशा कहती थी कि पंडित जी कथा में कहते हैं भूखे को भोजन कराना सबसे बड़ा धर्म है, तो मैं इसे कर्म नहीं अपना धर्म मान करके करती हूँ, मुझे कोई तकलीफ नही।’ उसने जब अपना जवाब दिया तो सामने वाली भी एकदम चुप रह गई और यह संदेश जब उसकी जेठानीयों तक पहुँचा तो फिर क्या था, सबने सोचा वाकई में जब पुण्य ही कमाना है, तो इसे अकेले क्यों कमाने दो, सब मिल जाओ, जुट जाओ और सब जुट करके काम में लग गई तो एक सहनशील बहु के कारण पूरे घर का ढांचा बदल गया।
बन्धुओं, आज घर-घर की यही कहानी है। काम थोड़ा होता है लेकिन तकरार ज़्यादा होती है। काम को काम मत मानिए, काम को अपना धर्म मानिए, कर्तव्य मानिए। एक उत्तम गृहणी के ५ गुण होते हैं। कभी इस पर विस्तार से चर्चा करूँगा- पहला है पति परायणता; दूसरा- धर्मशीलता; तीसरा- कार्यकुशलता, चौथा- मितव्ययिता; और पाँचवाँ गुण है- कुलीनता! यह कार्य कुशलता एक गृहणी का लक्षण है। आप गृहणी हो, छोटी हो, थोड़े दिन आप और सब्र से रहो। आप खुद अपने मन से पूछो जब उनकी बातों को सहती थी तब ज़्यादा खुश रहती थी कि आप जवाब देकर महाभारत करती हो तब ज़्यादा खुश हो? ध्यान रखना, सहने वाले को हमेशा सब कुछ मिलता है और लड़ने वाले के पास सदैव खोने को होता है, पाने को कुछ नहीं इसलिए जीवन में कुछ पाना चाहते हो तो सह करके ही पा सकते हो, लड़कर नहीं, इसे अपने जीवन का एक सिद्धान्त बना लो।
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