हम बच्चे जैन धर्म की प्रभावना के लिए अपनी ओर से क्या उत्कृष्ट कर सकते हैं?
सबसे पहले ये कि बच्चे अपने को जैनत्व की कसौटी पर खरा रखें। ‘हम अपने जैन धर्म का खुद पालन करें और दूसरों को प्रेरणा दें। हमारे सामने जैनी लोग बड़े लोग गलत काम करते दिखें तो उनसे कहें कि चाचाजी, भाई साहब, मम्मी जी, भाभी जी, चाची जी आप ये सब करते हैं, ये जैन धर्म के लिए शोभाप्रद् नहीं है और आप अपनी चर्या में दृढ़ रहेंगे तो आपसे प्रभावित होकर दूसरे लोग बदलेंगे।’
देखो बच्चों का बड़ों पर क्या प्रभाव पड़ता है? सन् १९९५ में हमारा चतुर्मास भोपाल में था। वहाँ पर शिविर लगा बेनाड़ा जी के नेतृत्व में और ३००० शिविरार्थी वहाँ थे। ३००० शिविरार्थीयों में से पाँच सेक्शन नॉन जैन बच्चों का थे। वहाँ हमसे जुड़े हुए एक सज्जन थे जो आकाशवाणी में डायरेक्टर थे- सुरेश चौधरी। उन्होंने कहा कि ‘महाराज जी मेरे एक मित्र हैं दीक्षित जी, वह सी.ए. है। उन्होंने कहा कि- तुम्हारे महाराज ने शिविर क्या लगा दिया हमारा तो खाना हराम हो गया। हमने पूछा कि तुम्हारे खाने से शिविर का क्या मतलब है? वे बोले कि उनकी आठ साल की बच्ची ने इस शिविर को अटेंड किया था और उस आठ साल की बेटी ने रात्रि भोजन का त्याग कर दिया। अब रात्रि भोजन का त्याग करने के बाद, उसने तो त्याग कर दिया, अब खाना खाने के लिए हम बैठे तो मेरी बेटी कहती है कि पापा आप रात्रि भोजन क्यों करते हैं इसमें तो माँसाहार का दोष लगता है। इसमें जीव हत्या होती है, आप जीव हत्या क्यों करते हैं? बोले तीन-चार दिन से बोल-बोल कर इसने हमको सुधार दिया। मेरा रात्रि भोजन का त्याग हो गया।’
बच्चें धर्म की प्रभावना कैसे कर सकते हैं? अपनी चर्या इतनी अच्छी रखों कि तुमको देखकर तुमसे बड़े शर्मिंदा हों और सुधर जायें।
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