किस्मत हमारे हाथ में नहीं होती है पर निर्णय तो हमारे हाथ में होता है। निर्णय भी सोच समझ कर लेते हैं पर वह भी कभी-कभी गलत क्यों हो जाता है?
इसीलिए तो कहते हैं कि जो हमारे हाथ में नहीं है उसके बारे में हमें कोई चिन्ता नहीं होती, गलती वहीं होती है जहाँ हमारे हाथ में कुछ होता है। अगर हमारे निर्णय को भी किस्मत से बांध दिया होता और हम पूरी तरह किस्मत के अधीन होते हैं तो शायद जितनी गलतियाँ आज कर रहे हैं उतनी नहीं करते।
मनुष्य जब अपनी बुद्धि चलाता है, तो बुद्धि चलाने में कई बार उससे गलतियाँ होती हैं। बुद्धि की एक दुर्बलता है, बुद्धि के साथ कभी-कभी आवेग का भी put (छींटा) मिलता है, अनुभव की कमी भी हमारे निर्णय में कारण बन जाती है, बाधक बन जाती है। जब हम अपनी बुद्धि को स्थिरचित्त करके अनुभव के साथ सोचते हैं तो हमारा निर्णय सही होता है।
लेकिन कभी-कभी निर्णय गलत हो जाता है पर मैं आपसे यह कहूँगा जब भी कोई गलत निर्णय हो जाएँ तो उसमें अपने मन में हीन भावना लाने की जगह यह सोच लो कि शायद मेरे किस्मत में यही है।
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