आजकल वर्तमान जीवन में नारी को दोहरी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना पड़ता है। ऐसे में कभी-कभी नारी को अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करनी पड़ती है। तो ऐसे में एक नारी दोनों के बीच में कैसे अपना दायित्व बनाए रखें?
नारी के जीवन में ऐसे कोई कर्तव्य नहीं हैं, ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं है जिसमें उसे नारी के लिए उचित कर्तव्यों की उपेक्षा करनी पड़े। नारी अपने नारीत्व की सुरक्षा रखते हुए अगर कोई भी कार्य करेगी तो वह निश्चित रूप से बहुत अच्छे कार्य होंगे।
दोहरी जिम्मेदारी का तात्पर्य शायद मैं ऐसा समझ रहा हूँ कि जब किसी नारी पर अपने परिवार के भरण-पोषण और अर्थ निर्वाह की बात आती हो, जीविका का प्रश्न आता हो तो उसे उस समय एक कामकाजी महिला के रूप में एक व्यवसायी महिला के रूप में प्रस्तुत होना पड़ता है। उस घड़ी में उसे बहुत सारे ऐसे कार्य करने पड़ते हैं जो शायद आपकी नजर में नारी-उचित नहीं। लेकिन मैं कहता हूँ ऐसी आपात-स्तिथि में उस नारी का यही नारी-उचित कर्म है कि अपने परिवार को संभाले और अपने सन्तान को पिता और माँ, दोनों का प्रेम दे सके और जवाबदारी का वहन कर सके। इसलिए इसे मैं इसे नारी के लिए अनुचित कृत्य नहीं कह सकता।
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