शंका
आचार्य मानतुंग ने भक्तामर स्तोत्र की रचना कैसे की?
समाधान
आचार्य मानतुंग जी किसी प्रकार का काग़ज़-कलम लेकर नहीं बैठे थे कि ‘मुझे कोई काव्य की रचना करनी है।’ वह अपने आप में डूब गये थे और जब कोई साधक अपने आप में डूबता है, तो उसके मुख से उच्चारित हर शब्द मंत्र बन जाता है और हर अक्षर छंद बन जाता है। वे अपने में डूबे और उनके शब्द बन गए मंत्र और उनके मुख से उच्चारित अक्षर बन गए स्तोत्र और छंद। नतीजा यह निकला कि वह बोलते गये, उनके बन्धन कटते गये, हृदय के उद्गार ने भक्तामर स्तोत्र का रूप धारण कर लिया।
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