महाराज जी जब आहार को जाते हैं तो कैसे डिसाइड करते हैं कि वह किसके घर जायेंगे?
पाखी जैन, सांगानेर
इसके दो सिस्टम है या तो हम डायरेक्ट मन में सोच लें कि आज हम अमुक के यहाँ जाएँ, हम जा सकते हैं। जिसके यहाँ हमें जाना है, हम जा सकते हैं। हम नियम ले ऐसा कोई अनिवार्य नहीं है। लेकिन प्राय: हम लोग ऐसा नहीं करते क्योंकि सब भक्त लोग हैं किसको प्रायोरिटी दे? अपने मन में कुछ सोच लेते हैं, जैसे आज पहले नंबर पर जो खड़ा होगा उसके यहाँ जाएँगे या तीसरे नंबर पर जो खड़ा होगा उसके यहाँ जाएँगे, कोई कलश लिए हुए होगा उसके यहाँ जाएँगे, कोई श्रीफल लिए हुए होगा तो उसके यहाँ जाएँगे। इस तरह की विधि सोच लेते हैं। जैसे आज मैंने सोच रखा था कि जो कपल (जोड़े) 2-2 कलश लेकर खड़े होंगे वहाँ जाऊँगा। आज योग मिल गया तो ये ग्रेस से नहीं, मेरिट पर काम हुआ है। जिसका योग मिलता है वही होता है। यह हम लोगों के ऊपर है उस समय हमारी जो मन:स्थिति बन जाएँ उसके अनुरूप होता है।
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