शंका
जीव अपने कर्मों के फलस्वरुप नरक में जाता है और अपार दुःख को सहन करता है। परंतु जब तीर्थंकर भगवान का जन्म होता है तो क्षण भर के लिए उन्हें (नारकियों को) सुख का आभास किस संयोग से होता है?
समाधान
ये तीर्थंकरों के पुण्य के प्रताप से होता है।
“नारकाणामपि मोदन्ते यत्कल्याणपर्वसु“
जिनके कल्याणकों की घड़ी में नारकियों को भी कुछ क्षण के लिए प्रसन्नता की अनुभूति होती है। यह एक दिव्य विभूति के जन्म के कारण तीन लोक में हलचल होती है। उनके पुण्य के परमाणु वहाँ ऐसा वातावरण बनाते हैं।
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