श्री रामचंद्र जी ने विशाल सेना का निर्माण करके लंका में प्रवेश करके सीता के भोले-भाले जीव को रावण रूपी लोभ और वासना के चंगुल से मुक्त किया। आपकी निरन्तर गतिविधियों को देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद आप भी अपने प्रवचनों के माध्यम से अपने भक्तजनों को लोभ और वासना के चंगुल से मुक्त कराकर चैन की साँस लेंगे?
मैं प्रतिपल चैन से रहता हूँ और चैन की साँस लेता हूँ एवं लोगों को चैन से साँस लेने की विधि बताता हूँ। इसलिए जहाँ तक सवाल है कि मैं कुछ कर लूँगा तो मैं कुछ नहीं मानता। मैं अपने आपको कर्ता मानता ही नहीं, मैं करने वाला होता ही कौन? मै तो एक छोटा सा घटक हूँ, यदि कहीं मैं निमित्त बन रहा हूँ और ऐसा लगता है कि आपके निमित्त से हो रहा है, तो वो भी मेरा नाम हो रहा है। “गुरुदेव की कृपा से सब काम हो रहा है, करते हैं सारे गुरुवर सब काम हो रहा है”। मेरे मन में ऐसी कभी कोई भावना नहीं लेकिन हाँ, हमारे गुरुदेव ने हमें यही सीख दी है कि मैंने तुम्हें जितनी उदारता पूर्वक दिया है तुम भी उतनी ही उदारता पूर्वक दो। जो पात्र आए उसके लिए अपना हाथ हमेशा देने का रखो ताकि समाज का उद्धार हो, संस्कृति का उत्थान हो और हम सब मिलकर के यदि अपने आप को बदलने के लिए तैयार होते हैं, तभी दुनिया बदल सकते हैं। हमारी कोशिश होनी चाहिए अपने आप को बदलने की और हम उस परिवर्तन के लिए तैयार है।
आपने मुझे राम से जोड़ा, हम तो ये कहते है कि व्यक्ति को अपने भीतर के राम को पहचानने भर की देर है। हर व्यक्ति के भीतर राम है लेकिन उस राम को पहचानता कहाँ है। मनुष्य यदि अपने भीतर के राम को पहचान ले तो उसका काम ही कुछ ओर हो। कोशिश करें अपने आत्माराम को पहचानने का, अपने जीवन की धारा को बदलने का, अपने भीतर एक आध्यात्मिक क्रांति के जागरण का।
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