प्रतिमा प्रतिष्ठा होने के बाद पत्थर से भगवान कैसे बन जाती है?

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शंका

हमारे धर्म में ‘जिन दर्शन’ का बड़ा महत्त्व बताया गया है। जिसमें जिनेन्द्र भगवान की वीतराग प्रतिमा का हम दर्शन करते हैं। जब कोई प्रतिमा बनती है, तब उसकी प्रतिष्ठा नहीं हुई होती है। प्रतिष्ठा होने के बाद उस प्रतिमा का भाव-स्वरूप तो वैसा ही रहता है। प्रतिष्ठा होने के बाद उसके दर्शन मात्र से पापों और अनेक कर्म का नाश होता है, तो उस प्रतिमा में ऐसा कौन सा परिवर्तन होता है जो हमारे कर्मों का नाश कर देता है?

समाधान

आपके पास एक नोट है और उसमें गवर्नर की सील लगने से पहले और गवर्नर की सील लगने के बाद क्या अन्तर होता है? गवर्नर की सील लगने से पहले उस नोट की क्या value (मूल्य) होती है? सील लगने से पहले वो कागज है और गवर्नर की सील लगने के बाद वो नोट है। इसी प्रकार भगवान की प्रतिष्ठा होने से पूर्व वो मूर्ति है; और मुनिराजों के द्वारा, विधि विधान के साथ, पंचकल्याणक की प्रतिष्ठा विधि संपन्न होने के बाद सूर्य मन्त्र देते ही मूर्ति, मूर्ति न रहकर भगवान बन जाती हैं। ये दोनों में अन्तर है। इसलिए हमारा भाव प्रतिष्ठा के बाद प्रकट होता है। प्रतिष्ठा के पूर्व नहीं होता है।

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