एक ही व्यक्ति में गीत, संगीत, प्रवचन, कला और लेखन काव्य आदि अभिव्यक्ति की सशक्त प्रतिभा होती है, ये किस कर्म का फल होता है? इन गुणों की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिये?
मनुष्य में बहत्तर (72) कलाएँ होती है और चौसठ गुण होते हैं। कला और गुण पूर्णतया पुण्य के उदय से होते हैं। जो महापुरूष होते हैं इन सब गुणों में निषाद होते हैं। तीर्थंकर जैसे महापुरुषों में ये सब बातें सहज होती हैं। महापुरुषों के जीवन में ऐसा पुण्य के परिणाम स्वरुप होता है। सामान्य लोगों में ये सब चीजें बहुत कम देखने को मिलती हैं, ऐसे लोग रेयर (दुर्लभ) होते हैं, और कोई भी इस कला में पूरी तरह निषाद नहीं होता।
आप मेरी तरफ इशारा कर रहे हैं? मुझे कुछ नहीं आता, मैं तो अंगूठा छाप हूँ, बस बीच में कुछ बोल देता हूँ, आप लोगों को अच्छा लगता है। ये आपकी श्रद्धा और आप लोगों का प्रेम है, मेरा उसमें अपना कुछ नहीं है। लेकिन जिन लोगों में ये प्रतिभा होती है वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी कहलाते हैं। प्रतिभाशालियों के आगे हम लोग कुछ नहीं है। आज हम देखें द्वादशांग का इतना विस्तार है कि हम को ये नहीं पता कि द्वादशांग के कितने पद हैं और लोग अपने थोड़े से ज्ञान पर कितना अभिमान करते हैं। ये अभिमान करने जैसा नहीं है, ज्ञान का सागर अथाह है और हर पल इसमें सभी को कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए।
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