कर्म सिद्धांत और परिवार के पाप-पुण्य का प्रभाव!

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शंका

जब हर जीव अपने-अपने कर्मों का फल भोगता है, तो माँ-बाप के संस्कार बच्चे पर पड़ें ऐसा क्या होता है?

समाधान

ऐसा कहा जाता है, इसे हम थोड़ा सा जैन कर्म सिद्धान्त के हिसाब से समझें। हमारे पुण्य-पाप कर्म के उदय में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का प्रभाव पड़ता है। एक जीव का पुण्य है और वह किसी पुण्यवान व्यक्ति के घर में उत्पन्न हुआ है, तो उसके पुण्य में और अधिक वृद्धि होगी और पुण्यवान जीव भी क्षीण पुण्यवान के घर जन्मा तो उसकी स्थिति कुछ और होगी। शास्त्र में एक शब्द आता है “दाय भाग” -माँ-बाप के पुण्य का आधा भाग सन्तान के हिस्से आता है। आपके घर जो सन्तान आई अगर उसके माँ-बाप अच्छे पुण्यशाली हैं- जैसे चक्रवर्ती, चक्रवर्ती परम पुण्य शाली मनुष्य होता है, मनुष्यों में चक्रवर्ती से बड़ा पुण्य तीर्थंकर के अलावा और किसी का नहीं होता- चक्रवर्ती की जो सन्तान हुई उसे चक्रवर्ती के पुण्य का दाय भाग अपने आप मिल जाएगा। फिर वो उसे जितना फैलाये और जितना अपना पुण्य लेकर आये, हालाँकि पुण्य ही उसे चक्रवर्ती का बेटा बनाता है। पर क्षीण पुण्य होने के कारण, पाप का तीव्र उदय होने के कारण किसी भिखारी के घर जन्मा, अपना पाप तो लेकर आया ही, अपने माँ-बाप का भी पाप उसके साथ कुछ दाय भाग में होगा; तो अच्छाई और बुराई ये दाय भाग में चलता है। 

फिर निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध होते हैं, आप यह देखते हैं कि किसी परिवार में एक सन्तान की उत्पत्ति हुई और घर में पौबारह, शीर्ष समृद्धि हुई। अभी उसने कुछ व्यापार नहीं किया, बच्चा पेट में आया और जीवन में परिवर्तन, यह किस का असर है? घर के लोगों के पुण्य से भी ज़्यादा प्रगाढ़ पुण्य उस भावी जीव का है। वह पुण्य माँ के पेट से भी अपना चमत्कार दिखा सकता है। कभी-कभी ऐसा देखने में आता है कि कोई सन्तान आई और घर का दीवाला पिटना शुरू हुआ, दुर्गति चालू। आप धन्य कुमार के पूर्व जीवन के और वर्तमान जीवन के चरित्र को पलट कर देखेंगे तो समझेंगे। जब अकृत पुण्य था, माँ के पेट में आया, पिता की मृत्यु हो गई, जागीरदारी नष्ट हो गई। क्षीण पुण्य के कारण एक जागीरदार के यहाँ जन्म लेने वाले के अकृत पुण्य ने पूरे घर की हालत खराब कर दी। जब धन्य कुमार की पर्याय में आया तो जिस दिन से माँ के पेट में आया, आशीष समृद्धि होती गई। आप देखते है बहुतों में किसी की किसी के साथ शादी हुई और जीवन की धारा बदल गई। ये निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है यह मान करके चलना कि हम सब अपने-अपने पुण्य का खाते हैं लेकिन एक का पुण्य दूसरे में निमित्त बनता है। अतः घर परिवार में अगर १० सदस्य हैं, हो सकता है कि ९ सदस्य खट रहे हैं एक कुछ नहीं कर रहा और आपको यह खलता हो कि ‘ये कुछ नहीं कर रहा है’ तो भी अपने मन में सन्तोष रखो। क्या पता किस का पुण्य चल रहा है? तो हर व्यक्ति के पुण्य पाप का दाय भाग भी चलता है इसलिए इसको उसी तरीके से देख लेना चाहिए।

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