महिला संगीत में आइटम सॉन्ग अर्थात नगरवधू के जैसे मुद्राओं का कोरियोग्राफर को बुलाकर सीखना और नृत्य करना एवं यही विधि हम पूजन विधान इत्यादि में भी करते हैं, ये कहाँ तक उचित है?
यह हमारी संस्कृति के विरुद्ध है, यह आजकल टीवी का दुष्परिणाम है और इससे अपने आप को बचाना चाहिए। पहले गीत गाए जाते थे, अब महिला संगीत हो गया, बहुत ज़्यादा बिगड़ा रूप ले लिया है। ईमानदारी से बोलिए, जिन दिनों गीत गाया जाता था उन दिनों के प्रेम और आत्मीयता आज की महिला संगीत में दिखाई पड़ती हैं क्या? जब गीत गाया जाता था उस समय का जो सात्विक भाव है आज के महिला संगीत में देखने को मिलता है? ये सब क्यों? वस्तुतः महिला संगीत में बहुत कुछ गलत काम होता है और मुझे तो एक व्यक्ति ने बताया कि महिला संगीत के कार्यक्रम के पहले 15- 15 दिन या एक 1 महीने तक लोगों को डांस सिखाया जाता है और जितने सिखाने वाले होते वह कौन होते है, आप सबको पता है। यह बड़ा गंदा काम है, इस तरह की कुप्रवृत्तियों पर विराम लगना चाहिए। यह सब मीडिया की देन है, टीवी के प्रोग्राम्स का अन्धानुकरण है। ऐसा क्यों किया जाएँ? हमें अपनी पुरातन संस्कृति को ध्यान में रखकर के चलना चाहिए। हमारे यहाँ जो भी रीतिरिवाज थे, परम्परायें थी वे सब हमारे संस्कृति के संवाहक थे, उसे हम लोगों ने उपेक्षित कर दिया, धज्जी उड़ाने लगे, उसका यह दुष्परिणाम सामने आ रहा है।
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