आध्यात्म के साथ विज्ञान का तालमेल कैसे?

150 150 admin
शंका

आज का युग साइंस का युग है, spirituality (आध्यात्मिकता) और science (विज्ञान) यह दोनों एक साथ में कैसे चल सकती हैं?

समाधान

आध्यात्म और विज्ञान दोनों साथ-साथ कैसे चलें? मैं समझता हूँ अगर हम थोड़ी गहराई से समझें तो दोनों अपने आप में साइंस है। स्पिरिचुअलिटी (spirituality) ‘वीतराग विज्ञान’ है और साइंस (science) ‘पदार्थ विज्ञान’ है साइंस जो भी बात करता है वह बाहर की करता है और अध्यात्म जो भी करता है वह भीतर करता है। साइंस में प्रयोग है, अध्यात्म में अनुभव। साइंस की जो भी निष्पत्तियाँ है वे प्रयोगों के बाद बनती हैं और समय-समय पर बदलती भी हैं। अध्यात्म की जो भी निष्पत्तियाँ हैं वह अपनी अनुभूति से प्रकट होती हैं एक बार जो निष्पत्ति आ गई वह अन्त तक बनी रहती है वो कभी बदलती नहीं। 

अध्यात्म एक अलग धारा है जो अन्दर की बात है, हम अपने आप को जाने, स्वयं को जाने। एक साइंटिस्ट यदि अपनी धारा को बदलता है, तो वह बहुत अच्छा आध्यात्मिक हो सकता है क्योंकि हम पदार्थ जगत तक जब तक सोचेंगे, हमारी खोज बाहर रहेगी। अपने भीतर देखना शुरू करेंगे तो हमें लगेगा जो तत्त्व है वह बहुत विराट है और उसमें अपार सम्भावनाएँ हैं। यदि हम अपने अन्दर की शक्तियों को उद्घाटित करें तो परमाणु की जो शक्ति है उससे भी अनन्त गुना शक्ति हमारे भीतर है हम उसका लाभ ले सकते हैं, हम उसका उद्धार कर अपने जीवन में परिवर्तन कर सकते हैं। 

अल्बर्ट आइंस्टीन से उनके जीवन के अन्तिम दिनों में किसी ने पूछा कि ‘आपने अपने जीवन में इतनी बड़ी बड़ी खोजें की, क्या आपको ऐसा लगता है कि कोई ऐसी खोज आपके जीवन में अधूरी रह गई?’ आइन्स्टीन कुछ पल के लिए गम्भीर हुए और उन्होंने कहा ‘इस घड़ी में सोच रहा हूँ कि मेरे जीवन की एक बड़ी खोज अधूरी रह गई, ऐसा लगता है कि उस खोज के अभाव में मेरी सारी खुशी अधूरी है। एक ऐसी खोज अधूरी रह गई जिसके अभाव में मेरी सारी खोज अधूरी रह गई।’ सब लोग हैरत में रह गये कि क्या बोल रहे हैं? उन्होंने कहा कि ‘इस घड़ी में मैं एक ही बात सोच रहा हूँ कि जिस शक्ति के साथ मैंने इतनी बड़ी-बड़ी खोज की, उस खोज कराने वाली शक्ति की खोज अभी बाकी है और उसके लिए मुझे भारत में जन्म लेना था’ तो बस उसे खोजिए, खुद को खोजिए, हमारे जीवन का अध्यात्म तभी विकसित होगा।

Share

Leave a Reply