परिवार का निर्धारण कैसे होता है? कैसे पता चलता है कि अमुक जीव ही इस परिवार में जन्म लेगा और परिवार बनने के बाद भी उनका आपस में तालमेल क्यों नहीं बैठ पाता ?
परिवार का मतलब है परि और वार, चारों तरफ से जो वार करे उसका नाम परिवार। इसलिए तालमेल बैठने का तो काम ही नहीं है, परिवार है ही ऐसी चीज। संसार में रहने के लिए परिवार होता है और यदि परिवार में इतना प्रेम हो जाएँ कि आपस में खींचातानी न हो तो संन्यास कोई काहे को ले। संन्यास का मार्ग बना रहे इसलिए परिवार में थोड़ी खटपट भी आवश्यक है तभी तो निकलोगे। अब रहा सवाल कि परिवार क्यों बनता है तो परिवार एक संयोग है, यह संयोग कैसे बनते हैं? हम पुराणों की घटनाओं को पढ़ते हैं उसमें अक्सर यह देखने को मिलता है कि जितने भी प्रमुख परिवारों के सम्बन्ध होते हैं उनका पूर्व जन्म का कोई न कोई रिलेशन बना रहता है। उस आधार पर हम ये कह सकते है कि जो भी परिवार और इस तरह के संयोग बनते हैं उनका कोई न कोई पुराना रिलेशन हो लेकिन हम अवधारणापूर्वक ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जिनका पिछले भव से कोई सम्बन्ध नहीं फिर भी वो जीव वहाँ पहुँच गया तो ये एक केवल संयोग है और संयोग महज संयोग होते हैं।
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