शंका
यदि हमने पूर्ण श्रद्धा भाव से मुनि महाराज का चौका लगाया है और यदि किसी कारण से उनका अन्तराय हुआ या उनके स्वास्थ्य में कुछ गड़बड़ी आ गई तो उसमें हमारा कितना दोष है और उसका क्या प्रायश्चित लेना चाहिए?
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समाधान
आपने जानबूझकर के अन्तराय कराया क्या ? नहीं कराया ना, तो आपका जो था वो आपने किया। चौका लगाना आप के बस में हैं, आहार कराना आप के बस में नहीं हैं। अन्तराय किसको बोलते हैं पता है,
“दात्री पात्रयो:अन्तरम ऐती इति अन्तराय:”
जो दाता और पात्र के बीच में भेद डाल दे उसका नाम अन्तराय है।
तो चौका लगाया-आप दाता, महाराज आये सो पात्र और दोनों के बीच में पड़ा है यह अन्तराय, जो दोनों में भेद डालता है। वह जब तक कृपा नहीं करेगा तो आहार देंगे कैसे और हम लेंगे कैसे। इसलिए अंतराय कर्म का जब तीव्र उदय होता है आपके दानन्ताराय का और साधु के लाभांन्तराय का तो यह दोनों चलता है यह तो चलेगा आपका उसमें कोई दोष नहीं है बस अपनी विशुद्धि को और बढ़ाना चाहिए और भावना रखनी चाहिए की कहीं भी हो साधु का निरअन्तराय आहार हो।
Edited by: Pramanik Samooh
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