कम उम्र और ज्यादा उम्र में बने मुनि को कितना अलग फल मिलता है?

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शंका

कम उम्र और ज्यादा उम्र में बने मुनि को कितना अलग फल मिलता है?

समाधान

मुनि बनने के लिए वर्ष नहीं गिना जाता; उत्कर्ष गिना जाता है। ८ वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने वाले अपने आप में बड़े भाग्यशाली हैं। पर ऐसा मत सोचना कि जो ८ वर्ष की उम्र में दीक्षा लिए उनको केवल ज्ञान हो ही जाएगा और जिन्होंने अंत में दीक्षा ली उनको कुछ नही होगा। यह संयोग है। शास्त्र में ऐसे अनेक विधान मिलते हैं कि अनेक जीव अपने जीवन के अंत में अंतिम अंतर मुहूर्त में आयु के अंतर मुहूर्त अवशिष्ट रहने पर जिन दीक्षा धारण किये, मुनि बने, आत्मध्यान में निमग्न हुए, केवल ज्ञान को पाया और मोक्ष प्राप्त कर गये। तो सवाल अवस्था का नहीं है, उम्र का नहीं है, सवाल भीतर की परिणति का है। आत्मा का आत्मा से केंद्रीकरण होते ही मुनित्व का फल मिलता है। 

अब रहा सवाल, अल्प उम्र में और अधिक उम्र में क्या फल मिलता है। और जब अंत में फल होता है तो फिर हम अल्प उम्र में दीक्षा क्यों लें? दीक्षा मोक्ष के लालच से नहीं ली जाती, दीक्षा वैराग्य से प्रेरित होकर ली जाती है। और जिस क्षण किसी आत्मा के हृदय में वैराग्य प्रकट हो जाता है उसे कोई रोक नहीं सकता। उसकी परिणति दीक्षा की हो जाती है। या दीक्षा खुद उसके साथ अपना परिणय कर लेती है। तो यह वैराग्य की घटना है। मैं यह मानता हूँ जिसने ८ वर्ष की उम्र में दीक्षा लिया उसने अपने जीवन में पाप कम किया और कम भोगा। जिसने अंत में दीक्षा लिया उसने ज्यादा पाप किया और ज्यादा भोगा लेकिन आख़िरी में हिसाब बराबर कर लिया।

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