जो लोग मन्दिर आदि बनवाते हैं, श्री जी विराजमान करवाते हैं, यदि उन्होंने कोई ऐसा कर्म किया जिसकी वजह से उनको नरक-निगोद आदि में जाना पड़ा तो क्या वहाँ पर भी उनको पुण्य मिलता रहेगा और कितने भव के बाद उनको मोक्ष पद की प्राप्ति होगी?
सुश्री साक्षी सोनी जयपुर
मन्दिर आदि निर्माण करने का भाव उन्हीं जीवोंं को होता है जिनकी भवितव्यता बहुत अच्छी होती है। मन्दिर आदि के निर्माण के बाद नरक-निगोद जाना पड़े, ऐसा मैं निषेध तो नहीं करता लेकिन ऐसी सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं।
रहा सवाल उस जीव को पुण्य कितना मिलता है? लिखा तो जरूर है कि कभी व्यक्ति मन्दिर बनाता है, तो उस मन्दिर में जितने लोग पूजा-अर्चा करते हैं उनके पूजा-अर्चा के पुण्य का एक हिस्सा उनके पास चला जाता है।
अब सवाल है कि यह हिस्सा हर भव में मिलता रहता है या जिस भव में बनाया उसी भव में मिलता है, इसका खुलासा आगम में नहीं है। लेकिन निश्चित ही संसार के जितने भी आयतन हैं, वे पाप के आयतन हैं। एक मन्दिर ही ऐसा आयतन है जो पुण्य का आयतन है, जिसमें केवल पुण्य ही होता है। बनाने वाला भी पुण्य करता है और आने वाला भी पुण्य कमाता है। इसलिए इस पुण्य में लगे रहना चाहिए।
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