आमदनी का कितना हिस्सा दान करें?

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शंका

हमें गृहस्थ जीवन में रहते हुए अपनी आमदनी में से कितना प्रतिशत दान करना चाहिए?

समाधान

आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व मैं ये बताऊँ कि दान क्यों करना चाहिए! हमारे यहाँ दान देने की प्रेरणा दी जाती है, दान क्यों देते हैं? दान देने के पीछे केवल एक ही भावना है कि आप जो धन उपार्जित करते हैं वो पाप से करते हैं। षटकाय जीव की बिराधना किए बिना धनोपार्जन नहीं होता। गृहस्थ हो, जीवन के निर्वाह के लिए धन का उपार्जन आवश्यक है, उपार्जित करो। लेकिन इस बात को कभी भूलो मत कि मेरे द्वारा उपार्जित धन को मैं भोगूँगा और उसके बाद जो बचेगा सब यहीं छूट जाएगा। लेकिन उसके साथ उपार्जित पाप को भी मुझे भोगना पड़ेगा। धन के उपार्जन में अर्जित पाप के प्रक्षालन का साधन है दान! इसलिए प्रत्येक गृहस्थ को अपनी आय के अनुपात से दान करना चाहिए। 

आय के अनुपात से दान करें तो कितना दान करें? हमारे यहाँ तीन प्रकार के दाता बताए गए हैं और धन के विनियोजन की विधि बताई गई है। ‘उत्तम दाता’ – जो अपनी आमदनी के ५०% से अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण करता है, २५% आपत्ति-विपत्ति के लिए सुरक्षित रख लेता है और २५% का दान करता है। ‘मध्यम दाता’जो अपनी आमदनी के कुल छः भाग करता है, मतलब लगभग 16¾% , उनमें से वह तीन भाग से यानी लगभग ५०% से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करता है; दो भाग यानी लगभग ३३% आपत्ति-विपत्ति के लिए रख लेता है; और छटवाँ भाग, मतलब लगभग 16¾% दान में देता है। ‘जघन्य दाता’ – जो अपनी आमदनी के कुल १० हिस्से करता है; उसमें से ६०% से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करता है; ३०% को बचत के लिए रखता है, आपत्ति-विपत्ति के लिए रखता है; और १०% का दान करता है। 

यदि एक रुपया तुमने कमाया, तो नब्बे पैसे से ज़्यादा के उपभोग के तुम अधिकारी नहीं हो, दस पैसा तो तुम्हें दान करना ही चाहिए। इससे कम दान देने वाला परमार्थ की दृष्टि से सही दाता नहीं कहलाता। इसलिए ये भावना भाओ कि मुझे १० प्रतिशत का दान तो कम-से-कम करना ही है। यदि इतना कर लो तो कितनों का कल्याण हो जाए।

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