दानी के नाम की घोषणा करना कितना सही है?

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शंका

लोग कहते हैं कि ‘गुप्त दान दें! दान दिखाएं नहीं’। पर हमें ऐसा लगता है कि दूसरे दातार की  यह दान राशि देखकर अधिक प्रभावना होती है। हम क्या करें?

समाधान

आप बिल्कुल सही कह रही है। देखो! दान बताने का मजा क्या होता है? एक प्रसंग मैं आपको बता रहा हूँ। एक स्थान पर कुछ लोगों को एक अस्पताल खोलना था। छोटा सा अस्पताल था और उसके लिए २ करोड़ रुपये के जमा करने का का लक्ष्य था। अब दान माँगने के लिए कलेक्शन कहाँ से शुरू करें? तो उन लोगों ने क्या किया, कि नगर का बड़ा सेठ था, पर भारी कंजूस था, उसके यहाँ पहुँच गये। जिसने कभी एक रुपया दान नहीं दिया उसके यहाँ पहुँच गये। अन्दर गये तो बैठने को भी नहीं बोला और पानी को भी नहीं पूछा। जो लोग गये वो बहुत अनुभवी थे उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि आप दान नहीं देना चाहते हैं, हम आपसे दान माँगने भी नहीं आये हैं पर आपके पास एक request (निवेदन) लेकर आये हैं। सेठ बोला- क्या? वे बोले कि ‘हम आपके नाम का बस एक दिन के लिए उपयोग करेंगे और इस लिस्ट में सबसे ऊपर ५ लाख की राशि आपके नाम रख रहे हैं।’ सेठ बोला- ‘यहीं तो गड़बड़ कर दोगे और बाद में माँगोगे?’ वे बोले – ‘नहीं! हम आपको एफिडेविट (शपथ पत्र) दे देते हैं केवल एक दिन के लिए आपके नाम का इस्तेमाल करेंगे कि आपने ५ लाख रुपये की राशि दी है।’ उनको भी बात जँच गई। ५ लाख रुपये का दान उनका सबसे पहले लिख दिया गया और फिर वो लोग पूरी बस्ती में गए, लोगों से दान लिया। लोगों ने देखा कि इस आदमी ने ५ लाख रुपये दिए हैं, जिससे पाँच रुपये की भी आशा नहीं थी। तो एकदम लम्बी लाइन लग गई। उनका टारगेट जितने का था उससे ज्यादा का कलेक्शन हो गया। दूसरे दिन अपने कहे अनुसार वो लोग उस सेठ के यहाँ गए। इस भाव से कि उनका नाम वापस करने की हम उन्हें सूचना दें। अब की बार गये तो सेठ खुद दरवाज़े पर लेने आया। अन्दर बिठाकर के उनको दूध पिलाया। इन लोगों को बड़ा आश्चर्य कि सेठ का हृदय कैसे परिवर्तित हो गया?

सभी ने सेठ से कहा ‘देखिए हम लोगों ने आपके नाम का प्रयोग किया। हमें बहुत फायदा हुआ हम आज ये आपका नाम वापस कर रहे हैं। अब कोई क्लेम नहीं होगा। आपका नाम वापस कर रहे हैं।’ सेठ बोला- ‘नाम वापस मत करो, हमसे पैसा ले जाओ।’ सभी आश्चर्य मिश्रित भावों से से देखने लगे। सेठ आगे बोला ‘मैंने अपने जीवन में अब तक कमाने का सुख देखा था। मैंने करोड़ों कमाया मुझे उससे सुख नहीं मिला, और कल मैंने केवल पाँच लाख देने का नाम किया। फलत: मेरे घर में इतनी बधाइयाँ आईं कि जितनी कि आज तक नहीं आयी। अनेक लोगों की बधाईयाँ कि सेठ साहब आपने क्या किया, आपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ कार्य किया है। बहुत-बहुत बधाइयाँ आईं। मेरा मन अभिभूत हो गया। मैंने सोचा कि कमाने में वो आनन्द नहीं जो देने में आनन्द होता है। देने का आनन्द क्या होता है वह मैंने आज सीखा है? इसलिए ये पाँच लाख ये जाओ और मेरी आपसे रिक्वेस्ट है कि अब कभी भी दान का काम आये तो शुरुआत मेरे घर से ही करना।’ इसलिए एक के देने से सब को प्रेरणा मिलती है। और बताऊँ कि आज भी लोग दान मैदान देखकर देते है। खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है। 

एक दूसरे के साथ प्रेरणा जुड़े, इस भाव से तो आप सब के बीच में भी अपना नाम बोलते हैं, तो कोई बुराई नहीं है। इसका दूसरा लाभ भी है। कई लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि ‘मेरे नाम को announce (घोषित) न किया जाए, मेरी कोई चर्चा न की जाए।’ नहीं करो, कोई बात नहीं। एक बात बताओ, मैं आपसे सवाल करता हूँ कि एक व्यक्ति ने यहाँ दान बोला, आपने उसकी अनुमोदना की। पहली बात तो यह कि जब कोई दान बोलता है, तो आपको अच्छा लगता है या खराब? आप क्या सोचते हो? कि इस आदमी ने बहुत अच्छा कार्य किया, हे भगवान! मुझे भी ऐसी सामर्थ्य दे। मैं भी दे सकूँ।’ दान एक अच्छा कर्म है, आपने उसकी अनुमोदना की ना? इस अच्छे कर्म की अनुमोदना से आपने पुण्य पाया या पाप? किसके निमित्त से पाया? अगले के नाम की घोषणा हुई आपने अनुमोदना की तो आपने फ्री में पुण्य कमा लिया। अगर ये चुपचाप देता तो इतने लोगों का पुण्य बचता। इसलिए आभार मानना चाहिए जो दान करता है। उसका सत्कार करना चाहिए।

एक फायदा इसे देने वाले को। देखो ये कैल्कुलेशन, किसी के निमित्त से कोई अच्छा कार्य होता है, तो उस अच्छे कार्य में जितने लोग भागीदार होते हैं तो उनके पुण्य का एक हिस्सा उस निमित्त के पास जाता है, तो आपके कोटे में और पुण्य बढ़ जाता है। इसलिए उजागर करके दान दोगे तो ज्यादा पुण्य कमाओगे। अकेले दोगे तो अकेले जैसा पुण्य पाओगे। हर एक चीज का अपना एक तर्क (लॉजिक) है उसको उस तरीके से देखना। अभी तो आप लोग भाग्यशाली हैं। इस समय तो पूरा देश इस कार्यक्रम को देखता और सुनता है और लोग बैठे-बैठे अनुमोदना करते हैं। मेरे पास ऐसे कई लोग आये जिन्होंने कहा, कि मैं टी. वी. पर कार्यक्रम को देखकर, एक दूसरे को देखकर प्रेरित हुआ। एक व्यक्ति ने कहा कि उनके बेटे ने अपने गुल्लक की राशि सर्वस्व अर्पित कर दी, तो उसने सोचा कि मुझे भी गुणायतन से जुड़ना चाहिए और अपने आपको ट्रस्टी बना दिया। ये भाव होते हैं। 

एक दूसरे को देखकर के भाव होते हैं। अपने कल देखा कि डॉ. महेन्द्र पाण्डया और आशा पाण्डया ने शिरोमणि संरक्षक बनने का भाव इस टी.वी. के माध्यम से किया ना? इसलिए ये जो चीजें हैं, एक दूसरे के साथ निमित्त और नैमित्तिक सम्बन्ध बनते हैं, इसलिए किसी भी कार्य को एकांततः नहीं देखना चाहिए। उसे सब दृष्टियों से समझने का प्रयास करना चाहिए।

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