आजकल शादी के पहले लगभग 8० प्रतिशत लड़के-लड़कियों की कहीं न कहीं बात होती है और relation (सम्बन्ध) होते हैं पर जब शादी की बात होती है, तो लोग आसानी से कहीं और शादी कर लेते हैं। पर यदि कोई जैन समाज की लड़की की पसन्द सामने रखता है उसे समाज में बुरी नजर से देखा जाता है। क्या अपनी एक पसन्द रखना इतना गलत है?
हमारे यहाँ विवाह के कई भेद बताए और विवाह में धर्म विवाह को ही आदर्श विवाह और उत्तम विवाह के रूप में कहा गया। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो विवाह पूर्व स्त्री-पुरुषों का एक दूसरे से सम्पर्क करना ही गलत है, चाहे वह अपनी जात-बिरादरी में हो या बाहर, एक दूसरे से परिचय और बातचीत और खुद आगे होकर माँ-बाप की आज्ञा सहमति के बिना आपस में ही एक-दूसरे को प्रपोज (propose) कर देना और शादी-विवाह के लिए मानसिकता बना लेना हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। हमारी संस्कृति में विवाह का निर्णय माँ-बाप के ऊपर होता है और माँ-बाप जो निर्णय लेते हैं, बड़े अनुभवी आँखों से लेते हैं। उसमें संबंध-विच्छेद या divorce (तलाक) जैसी स्थितियाँ कम बनती है, अपने आप चुनने के बाद ज्यादा। यह हमारी परिपाटी से भिन्न है इसलिए इसे अलग दृष्टि से देखा जाता है। फिर भी यदि दूसरे दृष्टि से मुझसे पूछो तो अपने ही जाति-बिरादरी के मध्य अगर कोई विवाह का कार्यक्रम करते हैं तो उसे हम धार्मिक दृष्टि से गलत नहीं कहेंगे।
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