तीर्थ यात्रा में आचार, विचार और व्यवहार कैसा हो?
प्रायः आजकल लोग तीर्थ यात्रा में जाते हैं और उस यात्रा के दौरान अपने चिंतन का बहुभाग अपनी सुविधाओं में बिताते हैं प्रभु की आराधना में नहीं ऐसा करने से व्यक्ति का पुण्य क्षीण होता है। कभी भी किसी तीर्थ पर जाओ अपनी सुविधा के लिए मत जाओ, घर की सुविधा त्याग करके जाओ। मैं तीर्थ के लिए जा रहा हूँ अपने भीतर कुछ नया गठित करने के लिए जा रहा हूँ। सारी सुविधाएँ त्याग दो और तीर्थ यात्रा करने जब भी जाओ तो विशुद्ध रूप से केवल तीर्थ यात्रा करो तो आपको आनंद आएगा लेकिन देखता हूँ कि व्यक्ति जब किसी तीर्थ में जाने को होता है तो यह पूछने वाले लोग नगन्य होते हैं की उस तीर्थ में पूजा प्रक्षाल की क्या व्यवस्था है, कितनी वेदियाँ हैं, अभिषेक कितने बजे होता है, कोई विधान कराने के लिए विद्वान उपलब्ध है या नहीं ऐसा पूछने वाले लोग तो विरले ही मिलते हैं। यह पूछा जाता है ऐ.सी. रूम (AC Room) है की नहीं? यह बड़ा गड़बड़ हो रहा है और इसमें एक और महा गड़बड़ी हो रही है। तीर्थ क्षेत्रों में AC लगा सो लगा उसमें TV भी लगा दिया और आपके लिए पाप का दरवाज़ा खोल दिया। आप जब किसी तीर्थ क्षेत्र में जाते हैं, सम्मेद शिखर जैसा तीर्थ क्षेत्र जहाँ आप घर परिवार त्याग करके वंदना करने के लिए गए, वंदना करके अपने रूम में बैठे, TV का रिमोट आपके हाथ में आपने TV खोला, निश्चित रूप से आप वही सब चैनल देखेंगे जो घर में देखते हैं, फिर पूजा, दर्शन, वंदन, आराधना, सामायिक, ध्यान, जाप सब एक तरफ; सामने TV। क्या कमाओगे? विशुद्ध पाप! मैं तो आप लोगों से कहता हूँ कहीं कोई धर्मशाला बनाओ खासकर तीर्थ क्षेत्र में उस तीर्थ क्षेत्र में ऐसा किसी कार्य के लिए दान मत देना जहाँ TV जैसे पाप के निमित्त उपस्थित होते हों, जो लगवाता हैं वो महा पाप का भागी हैं, जो उसकी व्यवस्था करता हैं वो महा पाप का भागी हैं क्योंकि
अन्य क्षेत्रे कृतं पापं, धर्म क्षेत्रे विनश्यति।
मैंने सम्मेद शिखरजी में भी बात कही थी, हमको आश्वस्त किया गया की बहुत जल्दी हम लोग इसको हटा रहे हैं। इसको बिगाड़ा है उत्तर प्रकाश भवन और शाश्वत निहारिका ने, मैं नाम लेकर के बोल सकता हूँ और यह विडम्बना की सारी TV केवल दिगम्बरों की धर्मशाला में हैं, श्वेताम्बरों की कोई धर्मशाला में ऐसा नहीं हैं। कहाँ हैं तुम्हारी निष्ठा, कहाँ हैं तुम्हारे सिद्धांत, कहाँ हैं तुम्हारे अंदर की धर्म भावना? अगर सच्चे अर्थों में तुम्हारे मन में धर्म की निष्ठा हैं तो सारी TV को निकाल फेकों। शीघ्र अपनी कमेटी की मीटिंग बुलाओ, इतना कहने के बाद इतना विलम्ब क्यों हुआ। हम ऐसी कमेटी का साथ नहीं देंगे जो सिद्धांत को नहीं माने। यह कार्य होना चाहिए इसलिए कि इसका अनुकरण दूसरी संस्थाएँ करने लगी हैं। सारी दिगंबर संस्थाओं से TV हटनी चाहिए, आपको TV लगानी है लॉबी में लगाइए। रूम से TV हटाइए और उसमें केवल धार्मिक चैनल या एक दो न्यूज़ चैनल, मैं तो कहता हूँ इसकी जरूरत ही नहीं है। जिसको सुनना है उसके पास ANDROID है और APPS आपके मोबाइल पर है आप सुनिए ना! हम पाप की सामग्री क्यों परोसें? क्या श्वेताम्बरों के पास अच्छी धर्मशालाएँ नहीं हैं तो वो क्यों TV नहीं लगाते, क्या वह साधन संपन्न नहीं है, क्या वो TV नहीं देखते? TV देखते होंगे, आप से ज्यादा भी देखते होंगे, लेकिन धर्म क्षेत्र में नहीं देखते, यह धर्म निष्ठा का उदाहरण है। आप सबसे भी मैं कहता हूँ, कभी ऐसी स्थिति हो तीर्थ क्षेत्र में ऐसा कोई काम कभी नहीं करना।
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