बच्चों का लालन-पालन कैसे करना चाहिये?

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शंका

माता-पिता को बचपन से लेकर १४ वर्ष तक के बच्चों का किस प्रकार से लालन पालन करना चाहिए जिससे कि बच्चे संस्कारित हों?

समाधान

बच्चों के विषय में हमारे यहाँ नीति बताई गई है कि चार वर्ष तक के बच्चों को खूब लाड़-प्यार से रखना चाहिए। मनोविज्ञान कहता है कि इस समय बच्चों का मन बड़ा कोमल होता है। इस अवधि में उसकी किसी भी भावना को आहत नहीं होने देना चाहिए। चार वर्ष तक खूब लाड़-प्यार से रखो। उसकी भावना आहत न होने न दो। परन्तु होता उल्टा है कि बच्चे बहुत छोटे होते हैं, काम में बड़ा ‘डिस्टर्ब’ करते हैं तो मम्मी उसे थप्पड़ मार देती है। तरह-तरह से डराती है, धमकाती है या कभी-कभी ऐसा कहते हैं कि ‘बाबा ले जायेगा’, या कहेंगे कि ‘महाराज जी पास जायेंगे तो महाराज जी गुस्सा हो जायेंगे।’ ये बच्चों के कोमल मन पर बड़ा बुरा प्रभाव डालता है। इसको सुनकर उनके मन में बाबा मात्र से डर हो जाता है। ‘महाराज जी गुस्सा हो जायेंगे’ मतलब महाराज जी ऐसे हैं जो गुस्सा होकर हमारा कुछ भी कर सकते हैं। 

उदाहरण:- एक बार किसी ने मुझसे कहा कि “महाराज मेरा बेटा बड़ा शैतान है।” मैंने कहा कि “आप कौन हो? आप शैतान की माँ हो”। क्या बोल रहे हो। तुम्हारा बच्चा चंचल, नटखट, उद्दण्ड, उपद्रवी हो सकता है लेकिन तुम्हारा बच्चा शैतान नहीं हो सकता। लेकिन बोलचाल में भी लोग क्या बोल देते हैं? उनको पता ही नहीं है। कैसे संभालेंगे संस्कार? संस्कार सम्भालिये। भावनाओं का ध्यान रखें। इतना ध्यान रखें कि बच्चा ज़िद्दी न बने, उग्र न बने। आपकी बातों को माने। उसे बहुत ढंग से ‘ट्रीट’ करें। उस समय उसके अन्दर धार्मिक भावनायें भी जोड़ दें। उसे मन्दिर ले जायें। जो छोटे-छोटे पाठ-जाप होते हैं, वह करें। थोड़ा-थोड़ा उन्हें सिखाया जाये और जीवन की वास्तविकता का उन्हें धीरे-धीरे बोध कराया जाये।

लालयेत् पंच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत्।

पाँचवें वर्ष में प्रवेश होने के बाद दस साल तक उनको भले ही custody में रखें। उनकी प्रवृत्तियों को देखें। उनकी उल्टी-सीधी बातों को तुरंत स्वीकार न करें। पहले के बच्चों में और आज के बच्चों में अन्तर आ गया है। पहले हम लोग जब छोटे थे तब घर में कोई अच्छी चीज आती थी तो हर सदस्य के हिसाब से उनकी पाती बन जाती थी और जो बच्चा उपस्थित नहीं होता था तो उसके हिस्से की पाती उठा के अलग रख दी जाती थी। लोग बड़े मिल जुल कर खुश-खुश रहते थे। आज एक ही बच्चा होता है बच्चा आगे-आगे भागता है और माँ उसके पीछे-पीछे भागती है “बेटा खाले, बेटा खाले…..।”

 कहाँ संस्कार है? जीवन जीने का क्रम ही बदल गया। आज के बच्चे को ढीठ बना देते हैं, चंचल बना देते हैं, उद्दण्ड बना देते हैं। माँ-बाप की बातों की खुली उपेक्षा करने वाला बना देते हैं। उनके संस्कार नहीं डालते हैं। ५ साल से १५ साल तक के बच्चों को अपनी कस्टडी में रखना चाहिए। उनकी अच्छी बातों को स्वीकार करना चाहिए, उनकी भावनाओं की कद्र करना चाहिए। लेकिन अच्छी-बुरी हर बातों को कभी समर्थन नहीं देना चाहिए। उनकी ज़िद को कभी पूर्ण नहीं करना चाहिए। और उसी अवधि में उन पर इतना कंट्रोल रखना चाहिए कि वह आप की बातों को टाल न सके। लोग पढ़ाई-लिखाई या अन्य बातों पर बहुत ज्यादा महत्त्व देते हैं। निश्चित दीजिए! पढ़ाई-लिखाई अच्छी चीज है। किसी बच्चे का अच्छा ‘करियर’ ही उसका आधार नहीं हो सकता है। 

उदहारण:- एक बहन जी ने अपने तरफ से चिन्ता प्रकट करते हुए कहा कि ‘महाराज जी! मेरे बच्चे को देखिए आजकल इसके नम्बर बहुत अच्छे नहीं आ रहे हैं।’ मैंने कहा कि “कितना प्रतिशत आ रहे हैं?” ‘महाराज ८०-८५ प्रतिशत आ रहे हैं।’ मैंने कहा कि “पहले कितना आता था?” बोले:- कि ‘महाराज जी! पहले ९०-९२ प्रतिशत आते थे। २-३ साल से इसका रिजल्ट गड़बड़ा गया है।’ हमने कहा “ठीक है! इसमें चिन्ता करने की क्या जरूरत है?” उसके पिताजी वहीं बैठे हुए थे? हमने कहा कि तुम्हारा कितना आता था तो बोले कि महाराज हम तो सामान्य विद्यार्थी थे। हम कभी ६० प्रतिशत से ज्यादा नम्बर लाये नहीं। उसकी माँ भी वहीं थी, हमने पूछा कि तुम्हारा? तो वो बोली कि महाराज श्री हमारा भी ६० प्रतिशत का average रहा। तुम जैसे ६० प्रतिशत वाले माँ-बाप जिसके होंगे उसका बच्चा मैरिट में आये, ऐसा कभी सोचना भी मत। क्यों सोचते हो ऐसा? मैंने कहा कि जितने आज के ‘रैंक होल्डर’ बच्चे हैं, आगे जाकर जीवन में पिछड़ जाते हैं। किसी बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को यदि जानना है, तो उसके सन्दर्भ में केवल तीन बातें देखें। 

 पहली बात उस बच्चे की गलत संगति न हो। उसकी संगति पर ध्यान रखो। दूसरी बात यह कि वह आपकी बात मानता है या नहीं? आज्ञाकारी कितना है, ये देखो। तीसरी बात जिद्दी तो नहीं? यदि तीनों बातें हैं, अपने काम प्रति समर्पित है, आज्ञाकारी है और कुसंगति से मुक्त है, तो भले आज बच्चा पढ़ाई में या परीक्षा की जिंदगी में पिछड़ जाये, लेकिन मैं आपसे कहता हूँ कि जिंदगी की परीक्षा में कभी फेल नहीं होगा। हमेशा सफल होगा। उसको उस तरीके से देखें ताकि वो अपने जीवन में, व्यवहार में आगे बढ़ सके। अपने आपको मजबूत बना सके। तो १० साल तक बच्चे को नियंत्रण में रखें। और कहते हैं कि, 

प्राप्ते षोडशे वर्षे पुत्रे मित्रवदाचरेत्।

बच्चा जब १६ वर्ष से ऊपर का हो जाये तो उसे बच्चा मानना बंद कर दें। माँ-बाप अपने बच्चे को मित्र मानें। लेकिन बच्चे अपने माँ-बाप को मित्र न माने। बच्चे कितने ही क्यो न हो जाये, माँ-बाप तो माँ-बाप ही रहेंगे। मित्र की तरह आचरण करें। आजकल के बच्चे बिल्कुल अलग हो गये हैं। माँ-बाप को ही नसीहत देने लगते हैं। 

 एक बार एक सन्त ने कहा कि ‘पापा-मम्मी को प्रणाम किया करो।’ बच्चा घर आया और बोला ‘पापा उठो और मम्मी को प्रणाम करो।’ उल्टा हो गया है। ये उल्टी बातें न सीखें। सही बातें सीखें। ताकि आपके जीवन का कल्याण हो सके और लोग अपने जीवन का पथ प्रशस्त कर सकें। इस विधि से आप अपने बच्चे को तैयार करते हैं, तो बड़े होने के बाद बच्चे के लिये आपको कुछ करना नहीं पड़ेगा। अच्छे बच्चे को अच्छा संस्कार देने के लिए पहले माँ-बाप को अच्छा होना पड़ेगा और आप अपने जीवन में भी वो घटित करके दिखाइये जैसा आप अपने बच्चों से उम्मीद रखते हैं।

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