हम लोग ‘बर्थडे पार्टी’ (birthday party) में जाते हैं और वहाँ बच्चे हमें केक देते है, तो हम नहीं खाते। उस समय बच्चे हम पर हँसते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?
पहले मैं इस बच्ची के माध्यम से सभी अभिभावकों से कहना चाहता हूँ कि बर्थ-डे पार्टी को बंद करें और जन्म दिवस मनायें। बर्थ-डे पार्टी और जन्मदिन में क्या अन्तर है? जो ‘बर्थ-डे’ पार्टी देते हैं, वो भारतीय परम्परा के अनुकूल नहीं है। वो ‘बर्थ-डे, ‘व्यर्थ-डे’ हो जाता है। उस दिन क्या करते हैं? केक काटते हैं, मोमबत्ती को बुझाते हैं; ये दोनों क्रिया भारतीय संस्कृति के विरुद्ध हैं।
जन्मदिन कैसे मनाएँ? जिस दिन किसी भी बच्चे का जन्म दिन आप मनाना चाहो, सुबह उसे जिन मन्दिर ले जाओ, जिन मन्दिर ले जाने के बाद उसे दर्शन कराओ, अभिषेक दिखाओ। यदि आठ साल से ऊपर का बच्चा है, तो उससे अभिषेक कराओ और यदि बच्ची है, तो उसे अभिषेक दिखाओ और उसके उपरान्त उसे घर लाओ। एक पाटे पर बढ़िया अल्पना (रंगोली) रंग दो, उसे सजाकर, उस पर बच्चे को बैठाओ। उस बच्चे का रोली से तिलक करो और उसके माथे पर घर भर के जितने भी बड़े लोग हैं, मन्दिर का जो ‘शेषाक्षत’ बचता है- ‘शेषाक्षत’ का मतलब पूजन के बाद जो सामग्री बच जाती है- उस शेषाक्षत को क्षेपते हुए उसको आशीर्वाद दो कि “चिरंजीवी भवः, कुल नायको भवः, दीर्घायुषी भवः, यशस्वी भवः”। ऐसा मंगल आशीर्वाद सारे घर के लोग दें। उस दिन उस बच्चे के हाथ से जीव दया का कोई कार्य करायें। यदि आपके यहाँ गौशाला है, तो गौशाला में ले जाकर के बच्चे के हाथों से गायों को गुड़ आदि खिलाएँ। उनके चारे-पानी की व्यवस्था अपनी शक्ति के अनुसार करें। गौशाला नहीं हैं, तो देश में १३७ गौशालाएँ गुरूदेव के आशीर्वाद से चल रही हैं। दयोदय महासंघ के माध्यम से आप वहाँ उनके लिए अपनी शक्ति के अनुरूप दान दें। कहते है कि अभय दान देने से अपमृत्यु टलती है। इसलिए अभय दान जरूर देना चाहिए। जितने अपने परिचितों को, मित्रों को बुलाना है, उनको बुलाएँ। मोमबत्ती बुझाइये मत, दीप जलाइये। “तमसो मा ज्योतिर्गमय“, ये हमारी संस्कृति की स्तुति है। हम लोग अन्धेरे के उपासक नहीं हैं, उजाले के उपासक हैं। तो जितने वर्ष का बच्चा हों, उतने दीप जलाओ। हम अपने जीवन में प्रकाश फैलाना चाहते हैं, अन्धेरा नहीं। केक मत कटवाइये, उस बच्चे के हाथों से लड्डू बंटवाए, जितना उसका जन्मदिन है, उतने लड्डू उसके हाथों से सब को बाँटें। ये जन्म दिन मनाने का भारतीय तरीका है और ये जैन धर्म से सहमत भी है। शेषाक्षत को आप शाम को भी कर सकते हैं।
ये दो भागों में कर लो। सुबह सब लोग मन्दिर से आकर आशीर्वाद दे दो और शाम को ये सब कार्यक्रम कर लो। बच्चे का हर कोई तिलक करे। जो भी उसके जन्मदिन में शामिल होने के लिए आया है। यदि बड़ा है, तो उसे आशीर्वाद दे। उसके प्रति मंगल भावनाएँ प्रकट करे। ये मंगल भावनाएँ उस बच्चे के कल्याण में सहायक बनेंगी। अतः जब भी तुम जाओ, वो केक काटे और तुम न लो तो वो हँसे, तब तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है। उनसे कहो कि ‘तुम लोग सच्चे भारतीय नहीं हो। आप पश्चिमी सभ्यता (western culture) को अपना रहे हो, और हँस रहे हो। हँसना हमें चाहिए आपको नहीं। गलत काम आप कर रहे हो, हम नहीं कर रहे हैं। सोचना आपको चाहिए। हमारी संस्कृति मोमबत्ती बुझाने की नहीं, है दीप जलाने की है।’ तो अपने आप उनके समझ में आने लगेगा।
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