समाज के निचले पायदान में जीने वाला व्यक्ति जो अपने जीवन की रोजी-रोटी में ही उलझ के रह जाता है वह धर्म कैसे करे?
धर्म करने के लिए दान, पुण्य करना ही जरूरी नहीं है। धर्म करने के कई तरीके हैं। आप अंतिम पायदान में रहने वाले व्यक्ति की बात करते हो, जैन धर्म तो पशु और पक्षी को भी धर्म करने की आज़ादी देता है। वह धर्म कर सकता है अहिंसा का अनुपालन करते हुऐ, वह धर्म कर सकता है सत्य का अनुपालन करते हुए। अहिंसा के पालन में कोई पैसा नहीं लगता। सत्य के अनुपालन में कहीं पैसे की जरूरत नहीं है। वह शील, संयम, सदाचार के साथ धर्म पालन कर सकता है। और कुछ नहीं तो हर काम को करते हुए णमोकार जप सकता है। यह भी उसके धर्म और पुण्य उपार्जन की क्रिया है। और धर्मात्माओं की क्रिया का अनुमोदन कर सकता है। इसके बल पर भी महान पुण्य पा सकता है।
भगवान महावीर के अतीत जीवन को पलट करके देखो। भगवान महावीर के जीवन की शुरुआत समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति से होती है। वह पुरुरवा भील की पर्याय में थे। पुरुरवा भील बड़ा हिंसक, क्रूर भील था। प्राणियों को लूटना और उनको मारकर खाना यह उसका रोज का कर्म था। लेकिन एक दिन मुनि महाराज का सानिध्य पाकर उनके उपदेश से प्रभावित होकर उसका हृदय परिवर्तन हुआ। उसने उस समय अहिंसा का संकल्प लिया। जो अहिंसा फलीभूत हो कर उन्हें अहिंसा का मसीहा बना दिया, प्रवर्तक बना दिया, धर्म के तीर्थंकर बना दिया। तो यह है धर्म! हर व्यक्ति के धर्म के अनुपालन की सुविधा है बशर्ते उसके मन में निष्ठा हों।
Leave a Reply