पर्व के दिनों में यदि कोई व्रत उपवास करना चाहे तो इस समय आरंभ परिग्रह का भी त्याग बताया गया है और गृह कार्यों को भी कम से कम करना चाहिए। इन सब में संतुलन कैसे स्थापित करें?
सबसे उत्तम तो यह है कि जिस दिन उपवास हो उस दिन घर ही को त्याग कर दो। आप कहेंगे- “महाराज उपवास करेंगे और घर का काम नहीं करेंगे तो पूरे घर का उपवास हो जाएगा”; तो मैं अच्छा सॉल्यूशन देता हूं, पत्नी यदि उपवास करे तो पति घर संभाल ले! मैं कहता हूं उन दंपत्तियों का दांपत्य बहुत मधुर होता है जहां पत्नी उपवास करे और पति पारणा कराए। यदि पत्नी ने उपवास किया है तो पारणा तुम अपने हाथ से भोजन तैयार करके कराओ। Cooperate करना चाहिए।
उत्तम तो यही है; यदि नहीं, तो इतना ही कर लो कि “वह उपवास करे तो मैं कम से कम रुखा सुखा खा कर के काम चला लूं।” यह मैं सारे पतियों से कह रहा हूं कि ऐसा सोचो – “मैं उपवास नहीं करता, मैं इतना अयोग्य हूं, मेरा शरीर के प्रति इतना तीव्र राग कि मैं उपवास की सोच भी नहीं सकता; धन्य है कि तुम इतना उपवास कर रही हो! चलो तुम्हारे उपवास का अनुमोदन करके भी पुण्य का छठा हिस्सा पा लूँगा। कोई चिंता मत करो, सुबह से मंदिर जाओ, रात को सोने को आना।” यह व्यवस्था है जिसे आप सब को करना चाहिये। जब आजकल एकल परिवारों में कभी-कभी पति को बाहर जाना पड़ता है तो पत्नियाँ आपात स्थिति में दुकान संभालती हैं। ऐसी मजबूरी में आप घर संभाल लीजिए, क्या बुराई है? ऐसी मजबूरी में आप घर संभाल लीजिए क्या बुराई “परस्परोपग्रहो जीवनाम्“!
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