गृहस्थ जीवन में रहते हुए हमने अपने चारों ओर बहुत सा परिग्रह संचित कर लिया है। लेकिन सभी सामान तो हम एक साथ अपने उपयोग में नहीं लेते। आप मार्गदर्शन दीजिए कि हम गृहस्थ जीवन में रहते हुए अपने परिग्रह को किस तरह से सीमित करके इसके दोष से बचें सके?
परिग्रह की एक सीमा बनायें और जो आपके परिग्रह हैं, जिनका नित उपयोग आप नहीं करते तो कम से कम कुछ time limit (समय सीमा) के लिए, रहते हुए भी, उनका उपभोग ना करने का नियम लें। जैसे आपके पास सौ साड़ियाँ हैं तो सभी साड़ी तो रोज नहीं पहनतीं। तय करो कि “मैं कितनी साड़ियाँ रखूंगी १००,२००,१०००; जितनी हैं, उतनी की लिमिट करो और अगर surplus (अतिरिक्त) है, तो उसको बाहर कर दो। और जो रखी हैं, रोज तो उपयोग में आता नहीं, तो यह तय कर लो कि “आज मैं दिन में चार बार बदलूंगी, दस कपड़ो का प्रयोग करूंगी”, यह आप की एक मर्यादा है जो आपकी आकुलता को कम करेगी।
ऐसी सब प्रकार की वस्तुओं के संदर्भ में सीमा बढ़ाई जा सकती है, इसे भोगो-भोग परिमाण के अंतर्गत कहा जाता है। इससे दोष कम होगा, आकुलता कम होगी। आपने नियम ले लिया कि “आज में दो ही बार कपड़े बदलूंगी”, आपको किसी ने offer (सुझाव) दिया कि “चलो! पिक्चर चलना है!” क्या करोगे? या तो पिक्चर जाओगे नहीं या जाओगे तो उसी कपड़े में चले जाओगे।
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