किसी व्यक्ति की लाइफ रिटायर्ड हो जाती है, तो वह अपने अधूरे सपने को पूरा कैसे कर सकता है?
लाइफ ‘रिटायर्ड’ हो तो कोई दिक्कत नहीं, लाइफ ‘टायर्ड’ हो तो दिक्कत है।
Retired हो जाओ तो हो जाओ पर tired मत हो। जिंदगी के आखिरी क्षण तक तुम्हारी जीविषा मन्द नहीं होनी चाहिए। तुम्हारे अन्दर अदम्य भावना होनी चाहिए। शरीर कमजोर हो जाए, मन को कमजोर मत करो। देखना है, तो बाबाजी को देख लो ८४ की उम्र में भी कितने जवान हैं। ये रिटायर्ड हैं पर टायर्ड नहीं। ऐसा उत्साह कि कई बार तो दिखता है कि जवानों से ज़्यादा कुछ करने का भाव रखते हैं। कुछ करने का जज़्बा मन में हो, उत्साह और उमंग यदि मन में हो तो सारे काम अत्यन्त सहज हो जाते हैं।
प्रायः यह देखने में आता है कि जब लोग रिटायर्ड हो जाते हैं तो depression के शिकार हो जाते हैं। ‘अब मैं क्या करुँगा?’ ख़ालीपन महसूस होता है। मैं तो कहता हूँ कि रिटार्यमेंट के पहले ही आप अपनी लाइफ को सेटल करो, कि ‘नहीं! अभी तक मैंने जो जीवन जिया वो संसार के लिए जिया, अब में अपने लिए जिउँगा।’
जिन सपनों की बात की जाती है वे सपने तो एक दिन टूटने ही हैं। संसार में किसी के सपने पूरे नहीं होते हैं। मुझे उन रंगीन सपनों को गढ़ना भी नहीं है और पूरे भी नहीं करना। मुझे तो जो अपना है उसको देखना है और उसकी तरफ दृष्टि रखें। अपनी आत्मा के उद्धार के विषय में सोचें तो जीवन में निश्चित कामयाबी मिलेगी।
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