हम यह अक्सर देखते हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों में बुजुर्गों का ही अनुभव उपयोग में आता है, तो हम ऐसा क्या करें कि हम अपने अनुभव आने वाली नयी पीढ़ी को दे सकें?
बुजुर्गों के पास अतीत का अनुभव है पर वर्तमान की ऊर्जा का अनुभव नहीं और इसके विपरीत युवाओं के पास असीम ऊर्जा है पर अतीत का अनुभव नहीं। युवा अपनी ऊर्जा का प्रयोग करें, बुजुर्ग युवाओं की ऊर्जा को समझें और उन्हें प्रेरित करें प्रोत्साहित करें। युवा बुजुर्गों के अनुभव का लाभ उठाएँ, वे ये सोचें-“केवल ऊर्जा कम होने के कारण वे अप्रासंगिक नहीं हैं, अनुभव के कारण वे आज भी हमसे भी ज़्यादा प्रासंगिक हैं।” युवाओं को और बुजुर्गों को आपस में तालमेल बना कर रखनी चाहिए।
एक उदाहरण देता हूँ। महाभारत में गदाधारी भीम युवा थे, क्रोधी भी थे, कब अपनी गदा घुमा दें, पता नहीं। युधिष्ठिर ने उनसे यह कह रखा था कि “जब तक मैं अंगूठा न उठा दूँ तब तक तुम अपनी गदा मत घुमाना।” बुजुर्ग युधिष्ठिर हैं एवं युवा भीम! युवाओं को अपना गदा घुमाने की आज़ादी देनी चाहिए किन्तु युवाओं को चाहिए कि इस युधिष्ठिर रूपी बुजुर्गों के अँगूठे पर अपना ध्यान केंद्रित रखें और आवश्यकता अनुरूप कार्य करें।
Leave a Reply