जीवन में सफलता कैसे मिले? हम स्वास्थ्य कैसे ठीक रखें? हमारे और लोगों के साथ कैसे बेहतर सम्बन्ध रहें? धर्म साधना कैसे हमारी बेहतर हो सके?
ये बहुत बड़ी आवश्यकता है। सबसे पहले हम सफलता का अर्थ समझें। सफलता क्या है? लोगों ने सफलता के जो अर्थ गढ़े हैं वे ठीक नहीं हैं। सफलता का मतलब यह नहीं कि अर्थ अर्जन ही कर लें। सफलता का मतलब है कि हम अपने जीवन में स्थिरता बना सकें, मन की प्रसन्नता को टिकाने में समर्थ रह सकें। वही वास्तविक सफलता है जो मनुष्य अपने द्वारा किये गये पुरुषार्थ से पा सके। सफलता पाने के लिए मनुष्य के अन्दर दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिये, उच्च मनोबल होना चाहिए, प्रगाढ़ आत्मविश्वास होना चाहिए और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण होना चाहिये। दृढ़ इच्छाशक्ति, उच्च मनोबल, प्रगाढ़ आत्मविश्वास, लक्ष्य के प्रति समर्पण जिस मनुष्य के अन्दर होगा वो निश्चयत: अपने जीवन में सफल होगा। अगर आपको किसी भी क्षेत्र में सफलता चाहिये, अगर आप उसको पाना चाहते हैं, अचीवमेंट करना चाहते हैं तो इन चीजों की बहुत आवश्यकता है।
स्वास्थ्य के प्रति व्यक्ति को जागरूक होना बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए बिना व्यक्ति अपने जीवन को आगे नहीं बढ़ा सकता। लोगों को यह सोच करके चलना चाहिए जैसे एक गाड़ी को हम ठीक ढंग से मेंटेन करते हैं वैसे हमारी शरीर की गाड़ी को भी मेंटेन करना चाहिए। जितने भी उपकरण हैं उनको तो हम कुछ समय के लिए विश्राम देते हैं लेकिन हमारे शरीर की गाड़ी तो नींद में भी अपना काम करती रहती हैं तो उसके प्रति हमें अवगत होना बहुत जरूरी है, तो हेल्थ कॉन्शियसनेस रखें। खानपान में, अपनी दिनचर्या में हम ऐसी नियम बध्यता रखें जिससे हमारे शरीर पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।
संबंधों को कैसे मेंटेन करें? हमारे जितने भी रिलेशंस(संबंध) हैं वे भावनाओं पर चलते हैं। एक दूसरे की भावनाओं का आदर सम्मान करना सीख जायें तो हमें अपने संबंधों को निभाने में कठिनाई नहीं। अगर आप अपने सम्बन्धों को मेंटेन करना चाहते हैं तो एक दूसरे के प्रति स्नेह रखिए, सहयोग दीजिए, सद्भाव रखिए, दूसरे की गलतियों को अनदेखा करिए, उनके प्रति सहिष्णु बनिये। यदि ऐसा करेंगे तो आप के सम्बन्ध बहुत अच्छे बनेंगे।
जहाँ तक साधना का सवाल है, तो साधना के लिए हमें अपना लक्ष्य बनाना चाहिए। उसके लिए पुरुषार्थ जगाना चाहिए। मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है? मुझे साधना करनी है, तो करनी है। अपनी शक्ति के अनुरूप जितना बने हम करें। एक- एक कदम चलते-चलते भी व्यक्ति हजारों मील की यात्रा कर लेता है। हजारों मील की चर्चा करने वाला एक कदम भी नहीं बढ़ पाता। हम जहाँ हैं जिस स्थिति में है वहाँ से अपनी भूमिका के अनुरूप जो अच्छा कर सकें, करने का प्रयास करना चाहिए।
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