वर्तमान में श्रावकों को four-wheeler (चार पहिया वाहन) से सफर करना पड़ता है, फोर व्हीलर वाहनों से पंचेन्द्रीय जीवों की भी हत्या हो जाती है। गाड़ी तो ड्राइवर ही चलाते हैं लेकिन हम लोगों के निमित्त से चलाते हैं। उसे हत्या में और उस मृत्यु में हम लोग कितने सहभागी हैं और उसका हम लोगों को क्या प्रायश्चित करना चाहिए?
यदि आप गाड़ी चलाते हैं तो सावधानी से चलाएँ। आप ही चलाते हैं, ड्राइवर तो निमित्त है, आपकी आज्ञा के बिना नहीं चला सकता है। यदि आप गाड़ी से सफर करते हैं और आपके निमित्त से गाड़ी चलती है, तो उसमें जो भी जीवों की हिंसा हो रही है उसमें आप भागीदार जरूर हो। इसलिए उत्तम तो यही है कि पैदल चलो और मुनि महाराज की तरह विहार करने वाले बन जाओ। लेकिन मुझे मालूम है कि ये बात आप को जचेगी नहीं क्योंकि आपके जीवन में ‘ये प्रैक्टीकल नहीं है’, तो यथा सम्भव सावधानी से चलाएँ। जितना बन सके इनका प्रयोग कम से कम करें। जब ज़्यादा जरूरी है, तभी करें।
इसमें छुटपुट जीवों की जो हिंसा होती है उसकी समय-समय पर भगवान के सामने निंदा व आलोचना करके प्रायश्चित लें। यदि किसी विशेष प्राणी की या पंचेन्द्रिय प्राणी की हत्या होती है, तो उसके लिए अलग से जाकर एकांत में विशिष्ट प्रायश्चित लेना चाहिए और वो पंचेन्द्रिय जीव का प्रायश्चित है। इसके अनुरूप ही इसकी शुद्धि होगी और कोई रास्ता नहीं है।
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