कोरोना को देखकर कई बड़े उम्र वाले लोग बहुत चिन्ता और भय से ग्रसित हैं कि अगर उन्हें कोरोना हो गया तो क्या होगा। ये चिन्ता कुछ लोगों को बहुत व्याकुल कर रही है। इस चिन्ता और भय को दूर करने के लिए गुरुदेव आपके मार्ग दर्शन की आवश्यकता है।
निश्चित रूप से ये महामारी सभी को चिंतित कर रही है, पर चिन्ता करके भी क्या होगा? पहली बात तो दिल-दिमाग से इस बात को निकाल दें कि जिनको भी कोरोना होता है, वो सब मरते ही हैं। कोरोना से मृत्यु दर तीन परसेंट के करीब है, बाकी लोग तो बच ही रहे हैं।
दूसरी बात की केवल कोरोना वाले मरते हैं, ऐसी बात तो नहीं है। जिनको कोरोना नहीं हुआ वो अमर होंगे, ऐसी भी बात नहीं है। जितने लोगों की कोरोना से मृत्यु हो रही है, उससे ज्यादा अन्य बीमारियों से लोगों की मृत्यु हो रही है; और अन्य कोई बीमारी नहीं है, तो कई ऐसे भी हैं जो स्वस्थ हो करके भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अभी कुछ दिन पहले एक व्यक्ति पैंतालीस साल की उम्र में हार्ट अटैक से चला गया, कोई बीमारी नहीं थी। तो कुछ भी हो, किसी की भी मृत्यु कभी भी हो सकती है। इसलिए मृत्यु को ले करके कभी घबराना नहीं चाहिए। तन का एक दिन जन्म हुआ, एक दिन अन्त होगा। लेकिन एक बात गांठ में बांध के रखिए- ‘जब तक मेरी आयु है, कोई मुझे हिला नहीं सकता और आयु पूरी होने के बाद, कोई मुझे जिला नहीं सकता। इसके बाद जिस दिन मेरी आयु पूरी होगी, उस दिन ये तन जाएगा, पर मेरी आत्मा का न तो जन्म है, न मरण।’ उस आत्म स्वरूप का चिंतन करो, भेद विज्ञान का चिंतन करो।
“न मे मृत्यु: कुतो भीतिर्न मे व्याधि: कुतो व्यथा नाहं बालो न वृद्धोऽहं, न युवैतानि पुद्गले “
जब मैं मृत्यु रूप नहीं हूँ, तो डरूँ किससे। ये तो तन की परिणति है, एक दिन जो होना होगा सो होगा। इस बात को ले करके मन का सारा भय और चिन्ता निकालनी चाहिए। एक बात और गाँठ में बांध लीजिए, “समय घाव करता है और समय ही घाव भरता है”। कोई कैसा भी घाव हो, समय ने हर घाव को भरा है इसलिए यदि किसी का नियोग इसी रूप में होना होगा तो होगा। हमने तो ये तक देखा है कि ९५ साल की वृद्धा कोरोना से संक्रमित हो कर बच गई और २३ साल का नौजवान मर गया; तो इसका उम्र से क्या सम्बन्ध? जन्म-मरण का संयोग अपनी जगह है, ये हमारे हाथ में नहीं है। हमारे हाथ में अपेक्षित सावधानी है, सतर्कता है। सरकार के द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करें, गाइड लाइन के अनुरूप चलें, अपने आप को सुरक्षित रखें, दूरियाँ बना करके चलें, अपनी इम्युनिटी को स्ट्रॉन्ग बनायें, मन में किसी प्रकार की चिन्ता और नकारत्मकता को हावी मत होने दें।
इम्युनिटी (immunity) को स्ट्रांग बनाने के लिए पूर्णायु का काढ़ा -कषायम काढ़ा, और संशमनी वटी का प्रयोग करें- ये बीस दिन का कोर्स है। आपके चैनल पर ऐड आता है, ऑनलाइन मंगाइए, लेना शुरू कीजिए, आपकी इम्युनिटी स्ट्रांग होगी। लेकिन ये मत सोचना जिसकी इम्युनिटी स्ट्रांग है, वो मरेगा नहीं। मरना तो सबको है। हम लोगों ने तो बचपन से सुना है,
“राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार। मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार।।”
जब मेरी बारी आएगी तो मैं मरूंगा, पर मरने के पहले मरने के डर से नहीं मरूंगा। अभी क्यों मरना, अभी क्यों डरना। जब मरना होगा तो मरूंगा। मैं अकेला थोड़ी मरूंगा, सारी दुनिया को मरना है। जिसकी जब बारी आएगी, तब मरना है। ये डर मन से निकालिये, ख़ौफ़ मन से निकालिये, अपने आपको अन्दर से मजबूत बनाइए। बार-बार, बार-बार इस तरह की नकारात्मक बातों को दोहराने से मन अशांत होता है। दूसरी बात, कोरोना सम्बंधित समाचार देखना, पढ़ना, सुनना बंद कीजिये, हो गया बहुत। ये जितना सुनोगे, तुम्हारे अवचेतन में उतना असर होगा, भावना योग कीजिए। “मैं सुरक्षित हूँ”, “मैं स्वस्थ हूँ”, “सुरक्षितोऽहं”, “स्वस्थोऽहं”, “निर्भयोऽहं” इन वाक्यों को बार-बार दोहराएँ। मन का सारा भय दूर होगा। “अजर-अमरोऽहं”, “अभयोहम्”, “निर्भयोऽहं”, “सुरक्षितोऽहं”, “स्वस्थोऽहं”, “निरामयोऽहं” ये अन्दर अनुभव करने की कोशिश करें, कुछ नहीं होगा। ये फितूर पाल करके बैठोगे, तो कोरोना से तो बाद में मरोगे, अपने कोरोना के ख़ौफ़ से पहले मर जाओगे। डर को निकाल फेंकिये। जब जो होना होगा, सो होगा।
अपने मन के डर, भय को दूर करने के लिए इन दो वाक्यों को आप हमेशा दोहराइये, “जो होगा, सही होगा” और “जो होना होगा, वही होगा”। इससे मन को सम्बल मिलेगा, धैर्य होगा। घबराने से किसी समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला। इसलिए अन्दर से मजबूत बनिए, तत्त्व ज्ञान का आश्रय लीजिए, मन का डर, भय, चिन्ता दूर कर दीजिए। ‘ठीक है, जो होना होगा, सो होगा और मरूंगा तो जिंदगी में एक ही बार तो मरना है, बार-बार थोड़ी मरना है। और सबको मरना है, अकेले को तो मरना नहीं है।’ इससे घबराने की जगह अपने आपको सयंत बनाने की कोशिश कीजिए और अपने बचे समय का सदुपयोग कीजिए। यही इसका सकारात्मक लाभ है।
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