दूसरे के पुण्य के प्रभाव में और अपने पुण्य के अभाव में मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले ऋणात्मक विकल्प का क्या समाधान है?
श्रीमान् सुनील जी जैन, भोपाल
प्रभाव तो प्रभाव होता है। हमारे पास सामने वाले का प्रभाव और अभाव हो, कोई दिक्कत नहीं, पर हम बहाव में न आएं, हमारा काम हो जाएगा। किसी के पुण्य का प्रभाव कितना भी हो लेकिन यदि हमारी विवेक बुद्धि जागृत हो तो हम उससे अप्रभावित रह कर अपने आप को बचा सकते हैं।
प्रश्नकर्ता के प्रश्न का आशय यह है कि एक व्यक्ति की खूब जय-जयकार हो रही हो, खूब ठाट-बाट हो, उसके पुण्य का बहुत जबरदस्त प्रभाव दिख रहा हो; और दूसरा व्यक्ति उसकी तुलना में बिल्कुल नीचे हो। एक ऊपर चल रहा है और एक नीचे जा रहा है। उस घड़ी मन में ये आता है, मन में हीनभावना आ जाती है या सामने वाले के प्रति ईष्या के भाव आ जाते हैं या अन्य प्रकार के नकारात्मक भाव आते हैं, उसका क्या? बस एक ही बात इसका सरल सा उपाय है- न अभाव देखो, न सामने वाले का प्रभाव देखो; उसके पास क्या प्रभाव है मत देखो और तुम्हारे पास किसका अभाव है, मत देखो। तुम्हारे पास जो है उसको देखो, जो नहीं है उसको मत देखो। अगर तुम अभाव को देखोगे तो दुनिया के सबसे बड़े धनपति के जीवन में भी कुछ अभाव मिलेंगे। चक्रवर्तियों के जीवन में भी कुछ अभाव होते हैं। अभाव की ओर मत देखो, जो तुम्हारे पास है उसका मूल्याँकन करो और तुम पाओगे कि तुम औरों से बहुत बेहतर हो।
लेकिन जब अपने ऊपर वाले को देखोगे और तुम्हें तुम्हारा अभाव दिखेगा, सारी जिंदगी रोते रहोगे। मन में विकल्प उत्पन्न होने लगेंगे और यह तुम्हें दुखी बना देगा। तो, अभाव को मत देखो और सामने वाले के प्रभाव को मत देखो, जीवन में समभाव को ले आओ, ऋणात्मक विकल्प मन में नहीं आयेगा।
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