जॉब में होने वाले पापों से कैसे बचें?

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शंका

मैं आर्किटेक्चर का विद्यार्थी हूँ। हमें कॉलेज में मॉल, रेस्टोरेंट और फाइव स्टार होटल जैसे डिजाईन करने के लिए दिये जाते हैं जिसमें हमें वेज और नॉनवेज दोनों किचिन और रेस्टोरेंट बनाना पड़ता, क्या हमें उसका भी पाप लगता है? यदि लगता है, तो उससे बचने का क्या उपाय है?

समाधान

मैं इस प्रश्न को केन्द्र बनाकर उन तमाम लोगों से कहना चाहता हूँ जो consultancy का काम करते हैं, professionals हैं, जो ऐसी कम्पनियों में ऐसे सॉफ्टवेयर बनाते हैं, जो ऐसी कम्पनियों के लिए प्रोग्राम डिजाइन करते हैं, जो ऐसी कम्पनी को ऑडिट करते हैं- वे ये मानकर चलें कि उस कम्पनी के पाप का एक हिस्सा वो भी शेयर करते हैं। इसे भूलिए मत। 

‘महाराज जी! फिर तो हम लोगों का काम करना बहुत कठिन हो जायेगा।’ कठिन तो होगा ही, उसको हम टाल नहीं सकते हैं। कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि हम ऐसी कम्पनी में काम करें जिसमें किसी भी प्रकार की हिंसा का कोई भी उपक्रम न हो। यदि कठिनाई है, तो ये मानकर चलिए कि ‘जो मैं पैसा कमा रहा हूँ उसके साथ पाप भी हो रहा है।’ और ये पाप तो त्रस घात का पाप है। मैं इसके विषय में क्या कहूँ? मैं इसका विधान भी नहीं कर सकता और व्यावहारिक तौर पर इसका निषेध भी नहीं कर सकता। पाप है, तो क्या करें? जितना बन सके पश्चाताप करें और अपने द्वारा उपार्जित पाप को साफ करने के लिए अपने धन का सदव्यय करना शुरू करो। कोशिश करो कि इसमें हमारा involvement कम से कम हो, अपने आप को जितना बचा सकें, बचाएँ। मेरे सम्पर्क में भी एक C.A. है। उनके पास एक शराब की कम्पनी को ऑडिट करने का प्रस्ताव आया। वो उसने खारिज कर दिया। बोला, ‘मैं इस कम्पनी को ऑडिट करूंगा ही नहीं क्योंकि इससे जो पैसा मेरे पास आयेगा वो पाप की कमाई का पैसा होगा।’ यदि आपके पास विचार और विवेक है, तो बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनकी कम्पनियों में कोई इस तरह का उत्पाद नहीं होता वो काम करें। अगर आप विचार और विवेक से काम करेंगे तो आप बहुत सारे पापों से बच जाएँगे। 

एक एडवोकेट ऐसी कम्पनियों के केस लड़ते हैं। अभी एक बहुत अच्छी घटना घटी। परम पूज्य आचार्य गुरूदेव के चरणों में गोपाल सुब्रमन्यम् आए, पहली बार जिन्होंने कुण्डलपुर के बड़े बाबा का केस लड़ा और न केवल केस लड़ा अपितु केस को सफलता पूर्वक विजय भी दिलाई। आचार्य गुरुदेव के सान्निध्य में आने बाद वो इतने प्रभावित हए कि बोले- ‘कुण्डलपुर के इस केस में मैं एक रूपये की भी फीस नहीं लूँगा और उन्होंने कोई फीस नहीं ली।’ उनकी फीस करोड़ों रूपये की थी जो उन्होंने छोड़ दी, जैसा कि मुझे वहाँ की कमेटी के लोगों ने बताया। दूसरी बात उन्होंने एक बहुत बड़ा त्याग किया। जब आचार्य जी ने कहा कि ‘Meat Exporters से जुड़े अभियान में आप जो Meat lobby का केस ले रहे है ये ठीक नहीं है, ये पाप आपके सिर भी जायेगा।’ उन्होंने उसी समय, डोंगरगढ़ में प्रथम दर्शन के क्षण में ही आचार्य गुरुदेव के चरणों में निवेदन किया और कहा कि ‘महाराज! आज से मैं संकल्प लेता हूँ कि आज के बाद ऐसा कोई भी केस नहीं लडूंगा और उनकी सारी फाइलें वापिस कर दूँगा’, ये उनका त्याग है। करोड़ों की कमाई ठुकराई और पाप से अपने आप को बचाया। 

तो प्रोफेशन में धर्म को आप केैसे पालें? एक ही बात ध्यान में रखें कि मेरी अहिंसा जिसमें फलीभूत हो मुझे वही काम करना है। हिंसा के मूल्य पर कमाया गया पैसा कभी ठीक ढंग से फलीभूत नहीं हो सकता है, गाँठ बांधकर रखें। आप कह सकते हैं “ऐसा करने पर तो हम बहुत पिछड़ जायेंगे।’ ध्यान रखना कि जो अपने आपको बहुत एडवांस (Advance) मान रहे हैं, परमार्थ की दृष्टि से सब बैकवर्ड (Backward) हैं।

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