शंका
किसी वस्तु या व्यक्ति को देखकर हमारे अन्दर उसके प्रति जो आकर्षण का भाव और उसे पाने की इच्छा होती है, इससे हम कैसे बच सकते हैं?
समाधान
वस्तु या व्यक्ति को देखने के बाद आकर्षण होना स्वाभाविक है और उसे पाने का भाव होगा ही। “कैसे बच सकते हैं?” तो उससे वही बच सकता है जो सदैव अपने लक्ष्य को सामने रख करके चलता है। आप लक्ष्य को सामने रख करके चलेंगे तो इस तरह की वस्तुओं को देखने के बाद भी अप्रभावित होंगे। आचार्य उमास्वामी ने इसलिए कह दिया कि “मनोज्ञ मनोगेंद्रीय विषय राग द्वेष वज्राणि पंच”, जितनी चीजें तुम्हारे सम्पर्क में और संसर्ग में आएंगी, तुम्हारे मन को भटकाने में निमित्त बनेंगी। इसलिए यथासम्भव ऐसी स्थितियों से बचें और यदि नहीं बचा जा रहा है, तो उनकी असारता का स्मरण हमेशा करते रहें।
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