आज जो खेती भारत वर्ष में हो रही है, उसमें रासायनिक खाद आदि का प्रयोग किया जा रहा है। इसे देखते हुए जैन धर्म में किस प्रकार खेती करनी चाहिए? ऐसी क्या व्यवस्था हो जिससे हमारे लोग जहाँ भी खेती कर रहे हैं, खेती के साथ हिंसा से बच सकें?
कृषि-कर्म को बहुविध आय कर्म के अन्तर्गत् एक सत्कर्म के रूप में रखा गया है। गृहस्थ अपने अर्थोपार्जन के लिए कर्म करता है और उसमें जैन धर्म में कृषि को अर्थोपार्जन के कर्म रूप में परिगणित किया गया है। कुछ लोग कृषि कर्म को एक ‘निंद्य कर्म’ निरूपित करते हैं। वह ठीक नहीं है। कृषि कर्म आय-कर्म है।
भगवान ऋषभदेव का ये सन्देश था कि ‘कृषक बनो।’ वे कृषि कर्म के प्रस्तोता थे और बीज के आविष्कर्ता थे। इसलिए कृषि कर्म एक अच्छा कर्म है। कई लोग ऐसा कहते हैं कि कृषि के कर्म में जो हिंसा होती है उसका भागीदार कौन है? कृषि में सीधे कोई हिंसा नहीं होती। वह आरम्भी हिंसा होती है संकल्पी हिंसा नहीं होती है। संकल्पी हिंसा को जैन धर्म में सर्वथा त्याज्य बताया है। लेकिन वर्तमान में जो कृषि की पद्धति चल पड़ी है वो कृषि पद्धति घोर हिंसा का कारण बनती जा रही है। ये कतई धर्म के अनुकूल नहीं है और मैं तो ये कहता हूँ कि देश के अनुकूल भी नहीं है।
आजकल कीटनाशकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग हो रहा है। यह घोर हिंसा है। जो लोग कीटनाशक का प्रयोग करते हैं, कीड़ों को मारने के लिए करते हैं- पूछते हैं कि ऐसी दवाई दो जिससे एक भी कीड़ा न बचे- ये घोर संकल्पी हिंसा है। महान पाप है। इसके साथ ही रासायनिक खाद का प्रयोग भी हमारे लिए नुकसान देय है, रासायनिक खाद धरती की उर्वरा शक्ति को कम करती है और अनेक-अनेक प्राणियों के हिंसा का कारण भी बनती है। इसलिए ऐसी कृषि करना कतई उचित नहीं है। पाप का कर्म है।
जो लोग कृषि-कर्म से जुड़े हैं मैं उनसे कहता हूँ कि कृषि-कर्म व्यापार से उत्तम कर्म है बशर्ते हमारी संस्कृति के अनुरूप खेती करें। उसमें जो भी करें कीटनाशक का प्रयोग बिल्कुल भी न करें। रासायनिक खाद की जगह आप देशी खाद का प्रयोग करें। देशी बीज का प्रयोग करें तो और उत्तम होगा। इसमें आप जीव हिंसा से भी बचेंगे और लोगों के स्वास्थ्य को संभाल भी सकेंगे। आज जैविक (ऑर्गेनिक) खाद का चलन बढ़ा है और लोगों में जागरूकता भी आई है। ऐसे ऑर्गेनिक खाद से जो भी उत्पाद है उसे महंगे मूल्य पर भी खरीदने के लिए लोग उत्साहित हो रहे हैं। क्योंकि उसका स्वास्थ्य पर अनुकूल असर होता है।
कीटनाशकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग का परिणाम ये आ रहा है कि माताओं के पेट के दूध में भी डी.टी.टी. का प्रादुर्भाव आने लगा है। डी.टी.टी. का निर्माण सारी अमेरिकी कम्पनियाँ करती हैं और अमेरिका में इस पर प्रतिबंध है। पर भारत है, इसमें जो चाहो सो हो जाता है। ये उचित नहीं है। कीटनाशक का कभी प्रयोग न करें। और कीड़ों को मारने का भाव तो कभी भी न करें। मैं इस सन्दर्भ में कहना चाहता हूँ कि जो लोग खेती करते हैं वे ये मानकर चलें कि सिर्फ आपके द्वारा बोया गया बीज ही नहीं फलता आपका पुण्य और पाप भी फलता है। यदि आप बीज बोने के साथ अपने पुण्य और पाप पर भरोसा रखते हैं, तो ये तय मानकर चलिए कि आपको हमेशा अनुकूल फसल की प्राप्ति होगी नुकसान नहीं होगा। चारित्र चक्रवर्ती शांति सागर जी महाराज जब घर में रहा करते थे खेती करते थे। दक्षिण में ज्वार की खेती बहुत होती है। सोलापुर, सांगली.. ये सब महाराष्ट्र में है, वहाँ ज्वार की खेती और गन्ने की खेती होती है। और ज्वार को तोते बहुत नुकसान करते हैं और लोग तोते को उड़ाने के लिए गुलेल का प्रयोग करते हैं, पटाखों का प्रयोग करते हैं, उन्हें उड़ाते हैं। पर आ. शांतिसागर जी महाराज कभी तोतों को नहीं उड़ाते थे। वे तो ये करते थे कि पानी की व्यवस्था और कर देते थे कि खाओ भी और पीयो भी। तोते आयें तो उनकी तरफ पीठ कर के बैठ जाते थे। और उनसे कहा था कि ऐसा क्यों कर रहे हो तो कहते थे कि तोते अपने पुण्य का खाते है जितना खाते है धरती हमें उससे ज्यादा दे देती है और ये एक बहुत बड़ी सच्चाई है। यहाँ लोग उपस्थित हैं, मेरी बात से सहमति प्रदान करेंगे कि पूरे इलाके में शांति सागर जी महाराज की रेकॉर्ड (सबसे अव्वल) फसल आती थी। तो ये अपना पुण्य है। इसलिए कीटनाशकों का तो प्रयोग करना ही नहीं चाहिए। मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक किसान भाई है, जो फसल निकालते है, अच्छी-अच्छी फसल लेते हैं जिनकी सैकड़ों एकड़ जमीन है, खेती है लेकिन बिल्कुल ही कीट नाशकों का प्रयोग नहीं करते और अब तो बहुत जागरूकता आयी है। ऐसे लोग भी हैं जो रासायनिक खाद का भी प्रयोग नहीं करते हैं। आप इनसे बचें, अपने पुण्य और पाप पर भरोसा करें।
आज एक युवक मेरे पास आया था। बहुत अच्छा काम कर रहा है। आई.टी. सेक्टर से जुड़े होने के बाद भी खेती के कार्य में सुधार का कार्य कर रहा है। रोहित जैन नाम है उसका उदयपुर से आया। आई.टी. सेक्टर से जुड़ा हुआ लड़का और इस लड़के ने कहा ‘महाराज, मैं एक काम कर रहा हूँ कि देशी बीज और देशी खाद के माध्यम से खेती को बढ़ावा दे रहा हूँ। इसमें ६१ किसानों को अपने साथ जोड़ लिया है। उदयपुर में जहाँ रहता है ‘ वटवृक्ष’ के नाम से इसने अपना एक एन.जी.ओ. (गैर सरकारी) चला रखा है और वो काम कर रहा है। लोगों में जागरूकता हो, और ये बोल रहा है कि इसका जो रिजल्ट है बहुत अच्छा आ रहा है। जो भी खेतिहर लोग है ऐसे लोगों से सम्पर्क करें और हिंसा से बचें। मैं तो एक बात कहता हूँ कि रूखी रोटी खा लेना अच्छा, पर संकल्पी हिंसा मूल्य पर अनाज उत्पादन करके ये चुपड़ी रोटी खाना ठीक बात नहीं है। ये नरक, निगोद का कारण बनेगा। ऐसा पाप का काम कभी मत करना। उत्तम तकनीक से और उत्तम रीति से यदि खेती जैसा कार्य किया जाता है, तो इससे अच्छा और कोई कार्य नहीं है। सार संक्षेप में मैं इतना ही कहूँगा।
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