दीवार से दीवार जुड़ने पर मकान का निर्माण होता है और रिश्तों के बीच दीवार आने पर खाई बन जाती है। इसकी वजह क्या है? ऐसा क्या करें जिससे रिश्तों में दीवार आए ही नहीं?
दीवार से दीवार कब जुड़ती है, आपने कभी विचार किया? दीवार से दीवार तब जुड़ती है, जब उसकी एक-एक ईंट एक दूसरे के साथ जुड़ी होती है और एक दीवार को दूसरे दीवार के साथ एक निश्चित दूरी और एक एँगल के साथ जोड़ा जाता है, तब मकान बनता है। बेतरतीब तरीके से यदि दीवार से दीवार जोड़ी जाए, तो मकान नहीं बनेगा और उसमें रहने वाले ईंट यदि उसके साथ रहने को राज़ी न हों तो मकान नहीं बनेगा। तो दीवार जब सलीके से उठाई जाती है, तो मकान बनता है और रिश्ते जब सलीके से निभाए जाए तो रिश्ते निभते हैं। हमें सलीका आना चाहिए, उसमें तरतीब होनी चाहिए। जैसे दीवार की एक-एक ईंट उस दीवार की पूरक है, वैसे ही रिश्तों में रहने वाले एक-एक घटक, चाहे घर परिवार के हो या बाहर के, वे अगर उसके घटक बन करके रहें और एक दूसरे के पूरक बन करके रहें तो हमारे रिश्तों की दीवार मजबूत होगी, वो टूट नहीं पाएगी।
आपने पूछा है कि रिश्तों में दीवार क्यों होती हैं? पहले दिलों में दीवार होती है, बाहर दीवार बाद में आती है। तो हम अपने दिल में दीवार उत्पन्न न होने दें। बाहर की दीवार को उठाने में कई दिन लगते हैं लेकिन दिल की दीवार तो एक पल में उठ जाती है क्योंकि वो हमारे अहंकार की दीवार है, जो एक दूसरे के बीच खाई पैदा करती है, विभाजन पैदा करती है। उस दीवार को हम कभी उठने न दें, उसे पनपने न दें, तो हमारे रिश्तों में मजबूती बनी रहेगी, प्रगाढ़ता बनी रहेगी।
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