जब आशा की किरण या उम्मीद पर पानी फिर जाता है तो व्यक्ति बहुत निराश हो जाता है, उस निराशा की स्थिति में व्यक्ति अपनी आशा की किरण कैसे जगाए?
उम्मीदों पर पानी फिरने से व्यक्ति के अन्दर हताशा होती है। आपने पूछा है कि उस हताशा की मनोदशा में अपने आप को कैसे बचायें? सबसे पहले तो यही कहना चाहूँगा – प्रयास ये करें कि हमारे ऊपर हताशा छाए ही नहीं।
हताशा से बचना है, तो सबसे पहला काम यह करें कि हम औरों से उम्मीदें कम बांधें। जो लोग ज़्यादा उम्मीदें बांधते हैं, ज़्यादा अपेक्षाएँ रख लेते हैं, ज़्यादा आशाएँ रख लेते हैं उनके साथ ऐसा होता है, जब उनकी पूर्ति नहीं होती या अपेक्षित भावनाएँ पूरी नहीं होतीं तो व्यक्ति अपने आपको उपेक्षित महसूस करने लगता है, अन्दर से टूटना शुरू हो जाता है। हम ज़्यादा उम्मीदें बांधे नहीं और यदि किसी के निमित्त से टूट रहे हैं, मन में हताशा छा रही है, तो अपने आप को असहाय महसूस न करें, उस समय कर्म सिद्धान्त का विचार करें। सोचें- “कर्म का उदय है, मैंने सामने वालों से आशा / अपेक्षा रखी थी, उसने पूर्ति नहीं की। ये उसका दोष नही, मेरे अपने कर्मों का दोष है। घबराने की बात नहीं है, थोड़े दिन में स्थितियाँ बदलेंगी, रात के बाद प्रभात होता है। मैंने एक बार ठोकर खाई लेकिन ठोकर खाने से ही ठाकुर बना जाता है। अभी तक मैं उसके भरोसे में था, अब किसी का भरोसा नहीं करूँगा और अपने जीवन को बदल लूँगा। परिस्थितियाँ आई हैं, अब मेहनत करूँगा; अभी तक मैं किसी के भरोसे पर था मेरा काम गड़बड़ाया, अब दुगुनी मेहनत करूँगा, मेरा काम सफल हो जाएगा।” मन में सकारात्मकता लाएं, आशावादी बनें, कर्म सिद्धान्त पर भरोसा रखें और मन में धैर्य रखें, आपकी हताशा शान्त होगी।
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