साधर्मी के प्रति, साधर्मी का व्यवहार कैसा हो?

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शंका

साधर्मी के प्रति, साधर्मी का व्यवहार कैसा हो?

समाधान

हमारे सम्यक दर्शन के आठ अंगों में एक महत्वपूर्ण अंग है ‘साधर्मी वात्सल्य’ और वात्सल्य का मतलब आप जानते हैं क्या होता है!, गाय और बछड़े की तरह जिसको देख कर मन पुलकित हो जाए| हर साधर्मी को चाहिए की साधर्मी को देख कर उसे हृदय से लगाने का भाव रखें और उसके लिए तन-मन-धन से जो सहयोग कर सके, करें, यही हमारे धर्म की प्रभावना का एक अच्छा माध्यम हैं| साधर्मी में बड़ा-छोटा नहीं देखना चाहिए; सबको समान दृष्टि रखते हुए उसे समान महत्व देना चाहिए, यह साधर्मी वात्सल्य की हमारी बड़ी पुरानी परिपाटी है| 

देखो साधर्मी वात्सल्य का क्या प्रभाव होता है, मेरे संपर्क में एक प्रोफेसर थे| उनका बेटा DFO की पोस्ट पर पदस्थ था| पिताजी धार्मिक थे, बेटा उस समय बहुत ज्यादा धार्मिक नहीं था, बहुत पुरानी बात है| उनका भोपाल में एक बड़ा मकान था और वो किसी शासकीय विभाग में देना चाहते थे| वह अपने बेटे को साथ लेकर के गए, वह मकान दिखाया जिस विभाग को वह मकान देना चाहते थे उस विभाग का डायरेक्टर भी जैन था| जब एक दूसरे से परिचय हुआ, मैं नाम इसलिए नहीं ले रहा हूँ की वह अभी सरकारी विभाग में पदस्थ है मुसीबत ना आ जाए; तो वह जैन थे जब एक दूसरे का परिचय हुआ तो कुछ कमियाँ थी तो उन्होने कहा कोई बात नहीं, आप आए हो तो यह हम अपना ऑफिस इसी मकान में खोलेंगे और इसमें यह जो कमियाँ है उसको ऐसे-ऐसे  आप ठीक कर लीजिए|बाप-बेटे दोनों फिर मेरे पास आए; बेटा इस से बहुत प्रभावित हुआ और पहले जो बेटा कहता था कि उसका जैनियों के प्रति एक अंदर से थोड़ी अलग धारणा सी थी| मेरे पास आकर पहला वाक्य कहा- “महाराज हमने आज जाना साधर्मी वात्सल्य क्या होता है? अगर वह जैन साहब नहीं होते तो हमारा काम नहीं होता|” यह घटना 1992 की है तब उनका वह मकान रु.50000 महीने में लगा था|यह है साधर्मी वात्सल्य| 

साधर्मी , साधर्मी को जहाँ बन सके सहयोग दें और सहयोग देने की भावना रखें; समादर का भाव रखें और  तो समाज बहुत आगे बढ़ जाएगी| आज जैन समाज ऐसे तो बहुत समृद्ध समाज मानी जाती है फिर भी जैन समाज में अनेक लोग हैं जिनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति बहुत खराब है उन्हें अगर दूसरे लोग सहयोग देने लगे तो समाज बहुत आगे बढ़ सकती है।

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