अभी कुछ दिन पहले व्हाट्सएप में देखा कि एक महिला अपने बुजुर्ग ससुर को लातों से बहुत मार रही है, गिरा-गिरा कर मार रही है। हमारी समाज में महिलाओं को और पुरुषों को भी आप संदेश भेजें ऐसा न करें।
घोर अमानवीय कृत्य है और जहाँ भी ऐसा हो रहा है बहुत निंदनीय है, पता नहीं लोगों की चेतना का स्तर कितना नीचे गिर गया है। हालाँकि जैन समाज में ऐसी घटनायें अभी तक प्रकाश में नहीं आई हैं, आप शायद किसी गाँव में घटी घटना को बता रहे होंगे जो करीब ६ महीना पहले से घूम रहा है। गाँव की किसी महिला ने अपने ससुर को लाठी और डंडों से मार करके, लातों से मार करके बाहर निकाला, निश्चित ही यह बहुत ही निंदनीय कार्य है ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को इंसान कहलाने का अधिकार नहीं है।
हम लोग धर्म करते हैं, समाज में बड़े-बड़े कार्य करते हैं, वो व्यक्ति अगर इस तरह का अमानवीय कृत्य करे तो इससे बड़ी क्रूरता और क्या होगी। हमेशा एक बात समझना चाहिए, आज तुम अपने माँ-बाप के साथ जैसा कर रहे हो, कल तुम्हारे बच्चे उससे भी ज़्यादा खराब करेंगे। आप माता-पिता के प्रति जैसा सलूक करते हैं कि आपके बच्चे आपसे वही सीखते हैं तो जो लोग अपने माँ-बाप की उपेक्षा, तिरस्कार, अवज्ञा, अनादर कर रहे हैं, करते हैं, ये मान करके चलना उनकी दशा और भयंकर हो जाएगी। वैसा कभी न करें क्योंकि बच्चे अनुकरण प्रेमी होते हैं, बच्चे वही दोहराते हैं जो अपने माँ-बाप से सीखते हैं।
कुछ दिन पहले एक घटना मेरे सुनने में आई। बेटे ने माँ को वृद्धाश्रम में भर्ती कर दिया। ३ वर्ष से माँ वृद्धाश्रम में थी, एक दिन रात के १० बजे माँ ने फोन किया कि ‘बेटा तू आ, एक बार मुझसे मिल।’ बेटे ने कहा ‘ठीक है, मैं कल मिल लूँगा।’ ‘नहीं बेटा तू आज मिल, आज मेरा जन्मदिन भी है, आज मेरी इच्छा है, तो आज ही मिल।’ माँ के कहने पर बेटा वृद्ध आश्रम में गया। माँ ने बेटे के आगे ₹१०८, ००० की राशि रखी और कहा ‘बेटे, तीन बरसों से मैं इस आश्रम में हूँ। तू प्रतिमाह मेरे लिए ₹३००० भेज रहा है, लेकिन ये रूपये मेरे काम में नहीं आए। ₹३६००० एक साल के हिसाब से पूरे ₹१०८००० हैं। यहाँ के लोग बहुत अच्छे हैं, सब लोग मेरा बहुत ख्याल रखते हैं, मुझे लोग बहुत चाहते भी हैं और मैं आश्रम के लोगों के साथ मिलजुल कर रहती हूँ, मुझे बहुत अच्छा लगता है। इन रुपयों में से एक पैसे का भी अभी तक उपयोग नहीं हुआ और सब कहते हैं कि आपको रुपयों की कोई चिन्ता नहीं, आपके व्यवहार से हम लोग सन्तुष्ट हैं, आप आराम से यहाँ रहो। तो बेटे मैं सोचती हूँ कि इन रुपयों की मुझे कोई जरूरत नहीं तो तू इन रुपयों को ले जा, अपने पास रख।’ ‘नहीं नहीं माँ तू रख, तेरे काम में आयेगा।’ ‘तीन साल से कोई काम में नहीं आया, अब क्या आयेगा। एक काम कर, तू यह रूपये रख तेरे काम में आ जायेंगे, मैंने तो तुझे थोड़े बहुत संस्कार दिया, उसका ही परिणाम है कि वृद्ध आश्रम में भेजने के बाद भी तूने ₹३००० भेजें। अपने व्यापार में बिजी रहता है, पैसा कमाने में २४ घंटे पागल रहता है, अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पाता, कल कहीं तेरे बच्चे तुझे वृद्धाश्रम में भेजें तो तुझे अभाव और तंगी का अनुभव न करना पड़े इसलिए ये रुपए तू सम्भाल कर रख देना।’ बेटा ने सुना, उसकी आँखों से पानी गिरने लगा, माँ के चरणों में गिर गया। कहा- माँ मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया।
उन लोगों से कहता हूँ जो अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ या किसी भी बड़े परिजनों या सदस्यों के साथ क्रूर व्यवहार करते हैं वे इससे भी क्रूर व्यवहार का सामना करने के लिए तैयार रहें। उनके जीवन के लिए एक बहुत खतरनाक संदेश है उन्हें बहुत सावधान होने की जरूरत है।
Leave a Reply