आलोचना और प्रशंसा की स्थिति में समता भाव कैसे लाएं?

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शंका

आलोचना और प्रशंसा की स्थिति में समता भाव कैसे लाएं?

समाधान

प्रशंसा को अनसुना करें और आलोचना को भी अनसुना करें समता भाव हो जायेगा। 

यदि कोई प्रशंसा कर रहा है, तो यह समझो यह प्रशंसा भी दूसरों के द्वारा की गई प्रशंसा है और यदि कोई आलोचना कर रहा है, तो यह समझो की यह आलोचना भी दूसरों के द्वारा की गई आलोचना है। प्रशंसा और आलोचना, दोनों में, जब आप इसे अपनी आत्मा से बाहर समझोगे तो आप उससे प्रभावित नहीं होंगे। 

कई बार प्रशंसा झूठी हो जाती है और आलोचना भी झूठी हो जाती है। व्यक्ति यदि अध्यात्मोन्मुखी दृष्टि रखे तो वह प्रशंसा में प्रफुल्लित होता नहीं और आलोचना में अधिक खिन्न नहीं होता। दृष्टि को अपनी तरफ लाना चाहिए और यह प्रयास करना चाहिए कि हम ऐसे बाहर के निमित्तों से ज्यादा प्रभावित न हों।

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